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Written By DW

कुदरत के दुश्मन हैं टीवी और इंटरनेट

कुदरत के दुश्मन हैं टीवी और इंटरनेट -
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जैव विविधता को बचाने के काम को वे बच्चे और मुश्किल बना रहे हैं जो टेलीविजन, इंटरनेट, विडियोगेम्स या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक मनोरंजन की गिरफ्त में हैं। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि यह लोग बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने कहा है कि ज्यादातर नौजवान शहरों में रहते हैं और कुदरत से उनका नाता टूटा हुआ है, इसलिए वे ईकोसिस्टम और प्रजातियों की सुरक्षा की अहमियत नहीं समझते।

जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यकारी सचिव अहमद जोगलाफ ने कहा, 'हमारे बच्चे कंप्यूटरों से चिपके रहते हैं। वे एसएमएस, विडियोगेम्स और टीवी की गिरफ्त में हैं। वे एक आभासी दुनिया में जी रहे हैं। हमें उन्हें दोबारा कुदरत से जोड़ना होगा।'

मनीला में दक्षिणपूर्वी एशियाई जैव विविधता फोरम में बोलते हुए जोगलाफ ने कहा, 'वे नहीं देखते कि आलू कैसे उगाया जाता है। वे तो बस आलू को सुपरमार्केट में ही रखा देखते हैं।

जोगलाफ ने कई सर्वेक्षणों के हवाले से कहा कि विकसित देशों में 95 फीसदी बच्चे अपना खाली वक्त टीवी या कंप्यूटर के सामने बिताते हैं और सिर्फ पांच फीसदी बच्चे बाहर जाते हैं। एक अन्य सर्वे के मुताबिक 20 फीसदी अमेरिकी बच्चे कभी पेड़ पर नहीं चढ़े।

जोगलाफ का कहना है कि शिक्षा की कमी कुदरत के संरक्षण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। उन्होंने यूरोप में 2009 में हुए एक सर्वे का जिक्र किया, जिसमें पता चला कि 60 फीसदी जनता को जैव विविधता शब्द के मायने ही नहीं पता थे।

उन्होंने पूछा, 'जिस चीज को आप जानते ही नहीं, उसकी रक्षा कैसे करोगे? आप उस चीज की रक्षा कैसे करोगे जिसे आपने कभी देखा ही नहीं?'

रिपोर्ट : एजेंसियां/वी कुमार
संपादन : ईशा भाटिया