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Written By DW

अमेरिकी सॉफ्टवेयर उद्योग भारत से नाखुश

अमेरिकी सॉफ्टवेयर उद्योग भारत से नाखुश -
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क्लाउड कंप्यूटिंग यानी दूर देश में बैठ कर कंप्यूटर पर काम की जिम्मेदारी संभालना मौजूदा वक्त की बड़ी जरूरत है पर सरकारी नीतियां इसमें अड़ंगा डाल रही है। विकासशील देश तो इसमें बाधा है ही विकसित देश भी कुछ कम नहीं।

अमेरिकी सॉफ्टवेयर उद्योग की एक रिपोर्ट में ब्राजील, चीन और भारत की नीतियों को सॉफ्टवेयर उद्योग में क्लाउड कंप्यूटिंग के भविष्य की राह में सबसे बड़ी बाधा कहा गया है। जर्मनी जैसे विकसित देशों की भी आलोचना की गई है जिन्होंने शुरुआत में अच्छा किया था।

अमेरिकी बिजनेस सॉफ्टवेयर अलायंस में माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल हैं। कंपनी के मुताबिक उसके कराए 24 देशों सर्वे में ब्राजील सबसे नीचे है जिसे संभावित 100 अंकों में से सिर्फ 35.1 अंक मिले हैं। ये अंक इन देशों की मुक्त व्यापार, सुरक्षा, साइबर अपराध और आंकड़ों की गोपनीयता जैसे मसलों पर बनाई नीतियों के आधार पर दिए गए हैं।

भारत बड़ा साझेदार : भारत अमेरिका के बाद दुनिया का सबसे बड़ा सॉफ्टवेयर उद्योग वाला देश है, तो चीन का सूचना और संचार उद्योग 2015 तक दुगुना हो कर 389 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने वाली है। मगर सर्वे में यह दोनों देश छठे नंबर पर हैं। भारत को 50 अंक मिला है तो चीन को 47.5.क्लाउड कंप्यूटिंग यानी दूर बैठ कर सॉफ्टवेयर, स्टोरेज या कंप्यूटर से जुड़ी दूसरी सेवाएं इंटरनेट के जरिए मुहैया कराई जाती हैं। क्लाउड कंप्यूटिंग सेवा की मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है क्योंकि कंपनियों के लिए इसके जरिए सेवा का लेन देन पारंपरिक तरीकों की तुलना में आसान और कम खर्चीला है।

बिजनेस कंप्यूटर अलायंस के इस रिपोर्ट को तैयार करने का मकसद बताते हुए संगठन के अध्यक्ष रॉबर्ट हॉलेमान ने कहा, 'तकनीकी समुदाय को आपस में ज्यादा सद्भाव वाले कानूनों की जरूरत है जिससे कि सही अर्थों में ग्लोबल क्लाउड बन सके।' हॉलेमान के मुताबिक सरकारी नीतियों में व्यापक सहयोग नहीं हुआ तो, 'क्लाउड छोटे छोटे टुकड़ों में बंट जाएगा।' उनका कहना है कि इससे सीमाओं के पार डाटा और सॉफ्टवेयर को भेजने और मंगाने की सुविधा से हासिल होने वाली दक्षता घट जाएगी।

जापान सबसे पहले : जिन 24 देशों को इस सर्वे में शामिल किया गया है, दुनिया के सूचना और संचार उद्योग का 80 फीसदी हिस्सा उन्हीं देशों में है। सर्वे को सात हिस्सों में बांटा गया जिसमें बौद्धिक संपदा की सुरक्षा, बुनियादी सुविधा और आंकड़ों के प्रवाह को मुक्त रहने के लिए औद्योगिक मानकों को समर्थन जैसे मसले भी शामिल हैं। इस सर्वे में सबसे पहला नंबर जापान को मिला है जिसे 100 में कुल 83।3 अंक मिले हैं। उसके बाद बहुत थोड़े थोड़े अंतर पर ही ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन और दक्षिण कोरिया हैं। इन सबको 70 से ज्यादा अंक मिले हैं।

हॉलेमान ने कहा कि वैसे तो रिपोर्ट, 'अमीर देशों और विकासशील देशों के बीच बड़ा फर्क दिखाती है, लेकिन कुछ बेहद अमीर देशों ने भी खुद को विवादित कानूनों और नियमों के दायरे में घेर लिया है।' यूरोपीय संघ के देशों को इस सर्वे में अच्छे नंबर मिले हैं, लेकिन हॉलेमान के मुताबिक अब,'यूरोपीय सांसद और कानून बनाने वाले लोग इसमें टांग अड़ा रहे हैं जिसकी वजह से गैर यूरोपीय कंपनियों के लिए मुकाबला करना मुश्किल हो रहा है।'

हॉलेमान ने जर्मनी का उदाहरण दे कर बताया, ' जर्मनी अपने देश में मौजूद कंपनियों के क्लाउड सर्विस की संभावनाओं को सीमित करने के लिए अपने चारों ओर दीवार खड़ी करना चाहता है।'

सुरक्षा जरूरी : रिपोर्ट में कहा गया है कि गोपनीयता को बनाए रखने के लिए मजबूत कानून इस्तेमाल करने वाले लोगों का भरोसा बढ़ाने के लिए जरूरी है। इसके अलावा सुरक्षा के सख्त उपाय भी जरूरी हैं, लेकिन चीन जैसे देशों ने इंटरनेट फिल्टर और सेंसरशिप लागू करके क्लाउड कंप्यूटिंग या डिजिटल इकोनॉमी के विकास में बाधा डाली है। ब्राजील को साइबर अपराध के लिए नीतियों के मामले में कुल 10 अंकों में से केवल 1.6 अंक ही मिले। जापान और फ्रांस ने इसमें पूरे नंबर पाए जबकि दक्षिण कोरिया को 9.8 के करीब अंक मिले।

ब्राजील के खराब प्रदर्शन के बावजूद हॉलेमान को उम्मीद है कि लेटिन अमेरिकी देश को सुधार की राह पर बढ़ने के लिए मना लेंगे। चीन के बाद वो दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जहां व्यापक सुधारों की जरूरत है। भारत के लिए भी हॉलेमान ने कहा है कि ग्लोबल क्लाउड कंप्यूटिंग उसके हित में है यह उसने जान लिया है।

रिपोर्टः रॉयटर्स/एन रंजन
संपादनः आभा एम