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Written By DW
Last Updated : मंगलवार, 11 मई 2021 (17:16 IST)

कोरोना: हम क्या जानते हैं वायरस के भारतीय स्वरूप के बारे में

Coronavirus | कोरोना: हम क्या जानते हैं वायरस के भारतीय स्वरूप के बारे में
वैज्ञानिक समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या भारत में महामारी की ताजा लहर के लिए भारत में पाया गया कोरोनावायरस का एक प्रकार जिम्मेदार है। इसका नाम बी.1.617 है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे 'चिंताजनक स्वरूप' बताया है।
 
इस महीने भारत में कोरोनावायरस संक्रमण के मामलों में जो उछाल आई है उतनी बड़ी वृद्धि दुनिया में और कहीं नहीं देखी गई। इस अवधि में स्वास्थ्य व्यवस्था पर इतना दबाव पड़ा है कि राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली और वित्तीय राजधानी कही जाने वाली मुंबई दोनों शहरों में अस्पतालों में बिस्तरों, दवाओं और यहां तक की ऑक्सीजन की भी कमी हो गई। वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर इतनी घातक लहर आई कैसे।
 
इस क्रम में वो वायरस के उस नए स्वरूप का भी अध्ययन कर रहे हैं जो पहली बार भारत में ही पाया गया। इसका नाम बी.1.617 है और यह अभी तक 17 देशों में पाया गया है।
 
क्या है 'इंडियन वेरिएंट'?
 
भारतीय विरोलॉजिस्ट शाहिद जमील का कहना है कि इस बी.1.617 वेरिएंट में वायरस के इंसानी कोशिकाओं से खुद को जोड़ लेने वाले बाहरी 'स्पाइक' हिस्से में दो अहम म्युटेशन या बदलाव देखे गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि इसकी सबसे प्रबल किस्म को पहली बार दिसंबर 2020 में भारत में देखा गया था। इसका पिछला स्वरूप अक्टूबर 2020 में भी देखा गया था।
 
10 मई को संगठन ने इसे एक 'चिंताजनक प्रकार' बताया और ब्रिटेन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रिका में पाए गए दूसरी चिंताजनक किस्मों की श्रेणी में डाल दिया। कुछ अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि भारतीय प्रकार बाकी प्रकारों के मुकाबले ज्यादा आसानी से फैलता है। संगठन की टेक्निकल लीड मारिया वान केरखोव ने कहा, 'कुछ प्रारंभिक अध्ययनों में बढ़ी हुई प्रसार की क्षमता देखी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रकार कितना फैल चुका है यह जानने के लिए और जानकारी की आवश्यकता है।
 
क्या अलग अलग किस्में मामलों में उछाल की जिम्मेदार हैं?
 
यह कहना मुश्किल है। संगठन के मुताबिक सीमित सैंपलों पर प्रयोगशालाओं में हुए अध्ययनों से संकेत मिले हैं कि इन प्रकारों की वजह से वायरस के प्रसार की क्षमता बढ़ गई है। लेकिन तस्वीर इस वजह से पेचीदा हो जाती है क्योंकि पहली बार ब्रिटेन में पाया गया बहुत तेजी से फैलने वाला बी.117 स्वरूप भारत के कुछ हिस्सों में आई उछाल के लिए जिम्मेदार है। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के निदेशक सुजीत कुमार सिंह कहते हैं कि नई दिल्ली में मार्च के तीसरे और चौथे सप्ताहों में यूके प्रकार के मामले लगभग दोगुने हो गए।
 
उन्होंने कहा कि इस अवधि में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में भारतीय प्रकार व्यापक रूप से मौजूद है। अमेरिका में वॉशिंगटन विश्ववद्यालय के जाने माने डिजीज मॉडेलर (बीमारियों के प्रसार का अध्ययन करने वाले) क्रिस मर्रे का कहना है कि भारत में एक छोटी अवधि में इतने ज्यादा नए मामलों का सामने आना संकेत देता है कि वहां के लोगों में प्राकृतिक संक्रमण के खिलाफ लड़ने की अगर पहले से कोई शक्ति है तो एक 'एस्केप वेरिएंट' उसके ऊपर हावी हो जा रहा है।
 
उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि संभवत: यह वेरिएंट B.1.617 है। हालांकि मर्रे ने चेताया कि भारत में वायरस के जीन सिक्वेंसिंग का डाटा काफी छिटपुट है और कई मामलों के पीछे यूके और दक्षिण अफ्रीका वाले वेरिएंट भी हैं। रोम में बैम्बिनो गेसू अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी और इम्म्यूनोलॉजी डायग्नोस्टिक्स के प्रमुख कार्लो फेडेरिको पेरनो ने बताया कि सिर्फ भारतीय वेरिएंट ही भारत की स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता है।
 
उन्होंने इसकी जगह बड़े सामाजिक जमावड़ों की तरफ इंगित किया। बड़ी बड़ी राजनीतिक रैलियों और धार्मिक समारोहों की अनुमति देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना हुई है। बीते हफ्तों में ये सारे जमावड़े सुपर-स्प्रेडर साबित हुए हैं।
 
क्या टीके इस वेरिएंट को रोक सकते हैं?
 
टीके एक उम्मीद की किरण जरूर हैं क्योंकि ये सुरक्षात्मक हो सकते हैं। व्हाइट हाउस के प्रमुख मेडिकल सलाहकार एंथोनी फाउची ने कहा है कि प्रयोगशालाओं में हुए अध्ययनों से हासिल हुए प्रारम्भिक साक्ष्य संकेत दे रहे हैं कि भारत में विकसित हुई कोवैक्सीन इस वेरिएंट को बेअसर करने में सक्षम है। इंग्लैंड की पब्लिक हेल्थ संस्था ने कहा है कि वो इस पर अपने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ काम कर रही है लेकिन इस समय इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि भारतीय वेरिएंट और उससे संबंधित दो और वेरिएंट और ज्यादा गंभीर बीमारी के कारण हैं या मौजूदा टीकों के असर को कम करते हैं।

 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वान केरखोव ने कहा कि हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं जो यह संकेत देता हो कि रोगों का पता लगाने और उनका इलाज करने की हमारी क्षमता और हमारे टीके काम नहीं करते हैं। यह महत्वपूर्ण है।
 
सीके/एए (रॉयटर्स)
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