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Written By DW
Last Updated : गुरुवार, 29 जनवरी 2015 (12:23 IST)

चालीस किलो का तीन साल का बच्चा

चालीस किलो का तीन साल का बच्चा - baby obesity
तीन साल के बच्चे का वजन चालीस किलो कैसे हो सकता है? जर्मनी में एक ऐसे ही बच्चे का मामला सामने आया। माता पिता बच्चे की कभी ना मिटने वाली भूख से परेशान थे।

हमारे शरीर को कैसे पता चल जाता है कि पेट भर गया है? क्यों एक हद के बाद हम और नहीं खा पाते? ऐसा इसलिए होता है कि लेप्टिन नाम का हार्मोन हमारे दिमाग को संदेश भेज देता है। जैसे जैसे हम खाना खाते हैं, शरीर में लेप्टिन की मात्रा बढ़ती रहती है। दिमाग के रिसेप्टर से जुड़ कर यह हार्मोन संदेश देता है कि अब पेट भर गया। इस तरह से यह हमारे वजन को भी काबू में रख पाता है। अगर यह ना हो, तो हम खाना खाते ही चले जाएंगे।

तीन साल के एक बच्चे के साथ ऐसा ही हुआ। खाना खाने के बाद भी उसे पेट भरने का अहसास नहीं होता था। तीन साल की ही उम्र में उसका वजन चालीस किलो पहुंच गया था। माता पिता बच्चे को ले कर कई डॉक्टरों के पास गए पर किसी को भी समझ नहीं आया कि दिक्कत कहां है। आखिरकार जर्मनी के उल्म मेडिकल कॉलेज में एक रिसर्च टीम ने इस बच्चे की बीमारी का पता लगाया। रिसर्च टीम का नेतृत्व करने वाली पामेला फिशर पोसोव्स्की का कहना है, "परिवार के लिए यह एक बड़ी समस्या थी। लोग भी माता पिता पर दबाव डालने लगते कि वे बच्चे की सही तरह परवरिश नहीं कर रहे, उसे खाने के लिए बहुत ज्यादा दे रहे हैं।"

लेप्टिन की कमी और उसके असर के बारे में पिछले बीस साल से जानकारी मौजूद है। महज एक ब्लड टेस्ट से इस बारे में पता लगाया जा सकता है। रिसर्च टीम ने बच्चे के खून की जांच की। पर हैरानी की बात थी कि रिपोर्ट में लेप्टिन की मात्रा सामान्य दिखी। पोसोव्स्की बताती हैं, "हमारे लिए अगला कदम था लेप्टिन की जीन को जांचना। इस तरह से हम पता लगा सकते थे कि कहीं जीन में कोई खराबी तो नहीं।" नतीजों में पता चला कि शरीर में लेप्टिन हार्मोन तो है लेकिन वह सक्रिय नहीं हो पा रहा और इसीलिए बच्चे को लगातार भूख का अहसास होता रहता है।

इस तरह से उल्म की टीम को एक नई बीमारी के बारे में पता चला। पोसोव्स्की बताती हैं, "हमारे नतीजों में खास बात यह थी कि हार्मोन तो शरीर में सही मात्रा में बन रहा है, पर वह काम नहीं कर रहा। हमारी इस खोज से इस बीमारी के इलाज का नया तरीका विकसित हुआ।" जिस तरह से डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं, उसी तरह हमने इस बच्चे को भी हार्मोन के इंजेक्शन दिए। कृत्रिम रूप से बनाए गए इस हार्मोन ने लेप्टिन वाला काम संभाला और बच्चे के दिमाग को पेट भरने के संकेत जाने लगे। पोसोवस्की बताती हैं कि इस इलाज के कारण बच्चे के वजन में कमी आई है।

इस तरह के और कितने मामले हैं, इस बारे में कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं लेकिन पोसोव्स्की का कहना है कि यह अपने किस्म का पहला मामला नहीं था।

गुडरुन हाइजे/आईबी