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Last Modified: गुरुवार, 27 जून 2019 (11:10 IST)

भारतीय बाजार में पहुंच चाहता है अमेरिका

भारतीय बाजार में पहुंच चाहता है अमेरिका | america and india
अमेरिका, भारत के साथ अपने रिश्तों में मजबूत रणनीतिक साझेदारी चाहता है। अमेरिकी विदेशी मंत्री माइक पोम्पेयो ने कहा कि अमेरिका अपनी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में और अधिक पहुंच का हकदार भी है।

 
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अफगानिस्तान के बाद भारत पहुंचे अमेरिकी विदेश मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। भारत दौरा और प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात दिखाती है कि एशिया में अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है। पोम्पेयो ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से भी मुलाकात की। दोनों पक्षों के बीच "रणनीतिक साझेदारी" को मजबूत बनाने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। दोनों देशों ने बढ़ते कारोबारी तनाव समेत रूसी हथियारों  के भारत द्वारा खरीद समेत द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने पर चर्चा की।

 
पोम्पेयो ने मीडिया से बातचीत में कहा, "हम प्रयास कर रहे हैं कि दोनों देश अपने आप को सुरक्षा देने में काबिल हो सकें। हम चाहते हैं कि भारत भी ऐसा करने में सक्षम हो। इसके साथ ही हम कारोबारी और आर्थिक रिश्ते भी अच्छे चाहते हैं।" हालांकि भारतीय विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने माना कि दोनों देशों के विचारों में मतभेद थे लेकिन इसके बावजूद दोनों देश मुद्दों को सुलझाने में लगे हुए हैं। पोम्पेयो ने कहा कि अमेरिका अपनी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में और अधिक पहुंच का हकदार है।

 
द्विपक्षीय कारोबार में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। दोनों के बीच सालाना 150 अरब डॉलर का कारोबार होता है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने अपने भारतीय समकक्ष के साथ ईरान मुद्दे समेत भारत के ऊर्जा संकट पर भी चर्चा की। भारत चीन के बाद ईरान से तेल खरीदने वाला  दूसरा सबसे बड़ा देश रहा है। दोनों विदेश मंत्रियों ने अगले हफ्ते जापान में होने वाली जी-20 शिखर भेंट में अमेरिका और भारत के नेताओं की मुलाकात की भी रूपरेखा तैयार की।

 
भारत की अहमियत
अमेरिका इंडो पैसेफिक (हिंद-प्रशांत) क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव बढ़ाने के लिए भारत को बेहद अहम खिलाड़ी मानता है। इसी माह जून में सिंगापुर में संपन्न हुए शंगरीला डॉयलॉग में अमेरिका ने इंडो-पैसेफिक स्ट्रैटजी रिपोर्ट जारी की थी। अमेरिकी रक्षा विभाग ने इंडो-पैसेफिक को प्राथमिक क्षेत्र बताते हुए कहा था कि वॉशिंगटन यहां भविष्य में सबसे महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक बदलाव होता देख रहा है। अमेरिका मान रहा है कि वह इस क्षेत्र मे चीन के साथ शक्ति प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है। दरअसल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन ने पिछले एक दशक में तेजी से अपनी शक्ति का प्रसार किया है। जानकार मानते हैं कि चीन से मुकाबला करने के लिए अमेरिका के लिए जरूरी है कि वह एशियाई देशों के साथ मजबूत साझेदारी करे।

 
अमेरिका ने भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने को एक अच्छा मौका कहा था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि यह जीत भारत को मजबूत और समृद्ध बनाने वाले नजरिए को एक अवसर देगी और भारत वैश्विक मंच पर अहम भूमिका निभाएगा। मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में  एक्ट ईस्ट पॉलिसी में दोबारा जान फूंकी और भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा रणनीति को दोबारा परिभाषित किया। ये रणनीति चीन की तुलना में भारत को अमेरिका के करीब लाती है। 

 
सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्ट्रैटजिक स्टडीज के वरिष्ठ सलाहकार रिचर्ड रोसो ने डीडब्ल्यू से बातचीत में  कहा, "भारत इस बात से राहत महसूस कर सकता है कि हिंद-प्रशांत वाले क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका ने अपनी कार्रवाई बढ़ा दी है।" उन्होंने कहा कि अधिकतर एशियाई देश चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ अमेरिकी कदम के इंतजार में थे।
 
रिपोर्ट: वेस्ली रान/एए
 
 
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