मुफ्त शिक्षा महज धोखा
प्रख्यात शिक्षाविद अनिल सदगोपाल से बातचीत
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आशा सिंह केंद्र सरकार ने छः से चौदह वर्ष के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का विधेयक लाकर गुणवत्तापूर्ण और भेदभावरहित शिक्षा देने की संवैधानिक जवाबदेही से पल्ला झाड़ लिया है। मुफ्त शिक्षा की बात महज धोखा है, क्योंकि इसके लिए बजट प्रावधान का जिक्र विधेयक में नहीं है। विधेयक से केवल शिक्षा के निजीकरण और बाजारीकरण की रफ्तार तेज होगी। निजी स्कूलों में 25 फीसद कोटा लागू होने से ये स्कूल फीस बढ़ाएँगे। इससे मध्यमवर्ग के हित प्रभावित होंगे।यह कहना है कि ख्यात शिक्षाविद अनिल सदगोपाल का। श्री सदगोपाल ने एक विशेष चर्चा में कहा कि लोकसभा में पारित शिक्षा के अधिकार विधेयक के कारण पहले से प्राप्त अधिकार भी छिन जाएँगे। विधेयक में छः साल तक के 17 करोड़ बच्चों की कोई बात नहीं कही गई है। संविधान में छः साल तक के बच्चों को संतुलित आहार, स्वास्थ्य और पूर्व प्राथमिक शिक्षा का जो अधिकार दिया गया है, वह इस विधेयक के जरिए छीन लिया गया है। श्री सदगोपाल ने कहा कि विधेयक में मुफ्त शिक्षा देने की मंशा स्पष्ट नहीं की गई है। इसमें लिखा है कि किसी भी बच्चे को ऐसी कोई फीस नहीं देनी होगी, जो उसको आठ साल तक प्रारंभिक शिक्षा देने से रोक दे। इस घुमावदार भाषा का शिक्षा के विभिन्ना स्तरों मनमाने ढंग से उपयोग किया जाएगा। विधेयक भेदभावपूर्णउन्होंने कहा कि विधेयक की धारा 8 मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के हकदार बच्चों को दो श्रेणियों में बाँटती है। जो बच्चे सरकारी स्कूलों में हैं, उन्हें इसकी सुविधाएँ मिलेंगी। जो बच्चे निजी स्कूलों में हैं, उन्हें नहीं मिलेगी। सरकारी स्कूलों की गिरती साख के चलते गरीब माता-पिता भी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने लगे हैं। लेकिन इन्हें न तो सरकारी स्कूल वाला लाभ मिलेगा और न ही निजी स्कूल के 25 फीसद कोटे का।