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Written By WD
Last Modified: शनिवार, 12 जुलाई 2014 (14:12 IST)

वैज्ञानिकों ने लैब में कॉर्निया बनाए

वैज्ञानिकों ने लैब में कॉर्निया बनाए -
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वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों से बहुत महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है और वे प्रयोगशालाओं में कॉर्निया बनाने में सफल हुए हैं। इस सफलता से यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में अंधेपन का इलाज सफलतापूर्वक किया जा सकेगा। अमेरिका में वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल्स से कॉर्निया को बनाया है। यह उन लोगों के लिए वरदान साबित होंगे जो कि आग से जल गए हैं, जिनकी आंखें केमिकल हमलों में खराब हो गई हैं या जिन लोगों को आंख की बीमारियां हैं। इसके साथ ही यह एक एडल्ट स्टेम सेल से ऊतकों को उगाने का पला ज्ञात उदाहरण है।

अमेरिका में मैसाचुएट्‍स आई एंड इयर रिसर्च इंस्टीट्‍यूट के एक दल ने यह सफलता हासिल की है। इससें अंधेपन के प्रमुख कारण को समाप्त करने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों के दल ने एक ऐसे तरीके का पता लगा लिया है, जिसके जरिए ह्यूमन कॉर्नियल टिशू को फिर से बढ़ाया जा सकेगा और ऐसा करने से पीड़ितों में दृष्टि की बहाली की जा सकेगी। इसके लिए उन्होंने एबीसीबी5 नामक मॉलिक्यूल का इस्तेमाल किया जोकि बड़ी मुश्किल से पाई जाने वाली लिम्बल स्टेम सेल्स के लिए एक मार्कर (चिन्हक) का काम किया है।

इस शोध का विवरण पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित हुआ है और यह इस बात का पहला ज्ञात उदाहरण है कि एक वयस्क से प्राप्त मानव स्टेम सेल से कैसे एक ऊतक (टिशू) बनाया जा सकता है। लिम्बल स्टेम सेल्स आंख की बेसल लिम्बल इपीथैलियम अथवा लिम्बस में पाया जाता है और इससे कॉर्नियल टिशू को फिर से पैदा करने और बनाए रखने में मदद मिलती है।

किसी चोट या बीमारी के कारण इनकी हानि होना अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। इससे पहले टिशू या सेल ट्रांसप्लांट्‍स की मदद से कॉर्निया को फिर से पैदा करने की कोशिश की जाती रही है, लेकिन अब तक इस बात की जानकारी नहीं थी कि क्या ग्राफ्ट्‍स (कलम या पैबंद लगाने) में वास्तविक लिम्बल स्टेम सेल्स मौजूद रहते थे और इनके परिणाम लगातार एक जैसे नहीं थे।

नए अध्ययन के तहत शोधकर्ता ऐंटीबॉडीज में से एबीसीबी 5 को पहचानने और इसका इस्तेमाल करने में सफल रहे। वे मृत मानव डोनर्स से टिशू में स्टेम सेल्स का ठीक से पता लगाने और उन्हें शारीरिक दृष्टि से सही तथा पूरी तरह से काम में आने लायक बनाने लायक हुए। इस तरह वे चूहों में कार्यशील मानव कॉर्निया को फिर से उगाने में सक्षम हुए। इस अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक डॉक्टर ब्रूस केसंडर का कहना है कि लिम्बल स्टेल सेल्स अत्यधिक दुर्लभ हैं और सफल ट्रांसप्लांट्‍स इन्हीं दुर्लभ कोशिकाओं पर निर्भर करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस निष्कर्ष से कॉर्नियल सरफेस को फिर से लौटाने में बहुत आसानी होगी। यह मामला एक ट्रांसलेंशनल प्रयोग के लिए बुनियादी शोध का बहुत अच्छा उदाहरण है।

इस शोध के सह लेखक डॉ. मार्कस फ्रेंक का कहना है कि एबीसीबी 5 लिम्बल सेल्स को जीवित बने रहने और इनकी मौत होने से सुरक्षित रखती है। इस मामले में डॉ. नताशा फ्रेंक का मत है कि चूहे के मॉडल से हमें पहली बार सामान्य विकास में एबीसीबी5 की भूमिका समझने में मदद मिली और आम तौर पर स्टेम सेल फील्ड में इसे बहुत महत्वपूर्ण होना चाहिए। लेकिन इस तरह का अध्ययन एक अकेली प्रयोगशाला में नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसमें जेनेटिक्स, एंटीबॉडीज, ट्रांसप्लांटेशन और बहुत सी विशेज्ञषताओं की जरूरत होती है।