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Written By भाषा

महान स्वतंत्रता सेनानी : विनोबा भावे

भूदान आंदोलन को मिला था अपार जनसमर्थन

Vinoba Bhave | महान स्वतंत्रता सेनानी : विनोबा भावे
जन्म : 11 सितंबर 1895
मृत्यु : 15 नवंबर 1982
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महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी एवं महान स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे ने देश में अपने भूदान आंदोलन की शुरुआत ऐसे समय की जब देश में जमीन को लेकर रक्तपात होने की आशंका उत्पन्न हो गई थी। विनोबा भावे के इस आंदोलन को अपार जनसमर्थन मिला तथा जनजागरूकता के साथ ही समाजिक निर्णय में लोगों की भागीदारी बढ़ी।

विनोबा भावे का मानना था कि भारतीय समाज के पूर्ण परिवर्तन के लिए ‘अहिंसक क्रांति’ छेड़ने की आवश्यकता है।

राजधानी दिल्ली स्थित केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के सचिव रामचंद्र राही के अनुसार विनोबा भावे ने कहा था कि उन्हें गांधीजी में हिमालय की शांति और बंगाल का क्रांतिकारी जोश मिलता है। गांधीजी ने विनोबा भावे की यह कहते हुए प्रशंसा की थी कि वह उनके विचारों को बेहतर ढंग से समझते हैं। गांधीजी ने वर्ष 1940 में अंग्रेज सरकार की युद्ध नीतियों के खिलाफ राष्ट्रीय विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए विनोबा भावे को चुना।

गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेंद्र भाई के अनुसार विनोबा भावे ने वर्ष 1955 में अपने भूदान आंदोलन की शुरुआत ऐसे समय की जब देश में जमीन के लिए खूनी संघर्ष शुरू होने की आशंका थी। 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के बाद उनके अनुयायी दिशा-निर्देश के लिए विनोबा भावे की ओर देख रहे थे।

विनोबा ने सलाह दी कि अब देश ने स्वराज हासिल कर लिया है, ऐसे में गांधीवादियों का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना होना चाहिए, जो सर्वोदय के लिए समर्पित हो। तेलंगाना क्षेत्र में कम्युनिस्ट छात्र और कुछ गरीब ग्रामीणों ने छापामार गुट बना लिया था। यह गुट अमीर भूमि मालिकों की हत्या करके या उन्हें भगा कर तथा उनकी भूमि आपस में बांटकर जमीन पर ऐसे लोगों के एकाधिकार को तोड़ने का प्रयास कर रहा था।

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ऐसा भी समय आया जब छापामार गुट ने कई गांवों के क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया, लेकिन सरकार की ओर से सेना भेजी गई। दोनों ओर से हिंसा शुरू हो गई। विनोबा भावे ने इस संघर्ष का हल निकालने का संकल्प लिया। उन्होंने प्रभावित क्षेत्र में पैदल ही जाने का फैसला किया।

विनोबा भावे अपनी पदयात्रा के तीसरे दिन तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव पहुंचे, जो कम्युनिस्टों का गढ़ था। वह मुस्लिम प्रार्थना स्थल परिसर में रूके। जल्द ही गांव के सभी वर्ग के लोग उनसे मिलने आने लगे। उनसे मिलने पहुंचे लोगों में भूमिहीन दलितों का 40 परिवार भी था। इस समूह ने विनोबा को बताया कि उनके पास कम्युनिस्टों का समर्थन करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है क्योंकि वे ही उन्हें भूमि दिला सकते हैं।

समूह में शामिल लोगों ने विनोबा से पूछा कि क्या वह सरकार से उन्हें जमीन दिला सकते हैं। विनोबा ने कहा, ‘इसके लिए सरकार की क्या जरूरत है, हम स्वयं अपनी मदद कर सकते हैं।’

विनोबा भावे ने बाद में गांव में एक प्रार्थना सभा का आयोजन किया, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। उन्होंने सभा में दलितों की समस्या रखी। उन्होंने लोगों से पूछा कि क्या ऐसा कोई है जो उनकी मदद कर सकता है?

गांव के एक प्रमुख किसान ने एक सौ एकड़ भूमि दान देने की बात कही। दलितों ने कहा कि उन्हें केवल 80 एकड़ भूमि की ही जरूरत है। विनोबा भावे को क्षेत्र की समस्या का हल मिल गया। उन्होंने प्रार्थना सभा में घोषणा की कि वह जमीन प्राप्त करने के लिए पूरे क्षेत्र का दौरा करेंगे। इसके साथ ही उनके भूदान आंदोलन की शुरुआत हो गई। अगले सात सप्ताहों में विनोबा भावे ने तेलंगाना क्षेत्र के 200 गांवों में जमीन दान में प्राप्त करने के लिए गए। सात सप्ताह के अंत में उन्होंने 12000 एकड़ भूमि एकत्रित कर ली।

विनोबा भावे के तेलंगाना क्षेत्र से जाने के बाद भी सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने भूमि प्राप्त करते रहे, उन्होंने उनके नाम पर एक लाख एकड़ भूमि दान में प्राप्त की।

विनोबा भावे का जीवन :-

विनोबा भावे का जन्म महाराष्ट्र के कोलाबा (अब रायगढ़) जिले के गागोडे गांव में 11 सितंबर 1895 को एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम ुक्मणि और पिता का नाम नरहरि शंभू राव था। उनकी मां का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव था। वह भगवद्‍गीता, महाभारत और रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों से बहुत अधिक प्रभावित थे।

कई पत्रों के अदान प्रदान के बाद विनोबा भावे सात जून 1916 को गांधीजी से मिलने गए। पांच वर्ष बाद आठ अप्रैल 1921 विनोबा भावे ने वर्धा स्थित गांधी आश्रम का कार्यभार संभाल लिया। उन्होंने वहां रहने के दौरान ‘महाराष्ट्र धर्म’ नाम की मासिक पत्रिका निकाली। इसमें उपनिषदों पर लेख होते थे।

इस दौरान उनके और गांधीजी के बीच संबंध और मजबूत हुए तथा समाज के लिए रचनात्मक कार्यों में उनकी भागीदारी बढ़ती रही।

वर्ष 1932 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने के आरोप में धुलिया में छह महीने के लिए जेल भेज दिया।

विनोबा भावे सामुदायिक नेतृत्व के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय रेमन मैगसाय पुरस्कार मिला था।

नवंबर 1982 में विनोबा भावे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उन्होंने भोजन और दवा नहीं लेने का निर्णय किया। उनका 15 नवंबर 1982 को निधन हो गया। उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। (भाषा)