गुरुवार, 28 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. नन्ही दुनिया
  4. »
  5. कहानी
  6. वेताल पच्चीसी की रोचक कहानियां : सत्रहवीं कहानी
Written By WD

वेताल पच्चीसी की रोचक कहानियां : सत्रहवीं कहानी

अधिक साहसी कौन?

Vikram Vetal Story - 17 | वेताल पच्चीसी की रोचक कहानियां : सत्रहवीं कहानी
चंद्रशेखर नगर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसके एक लड़की थी। उसका नाम था उन्मादिनी।
जब वह बड़ी हुई तो रत्नदत्त ने राजा के पास जाकर कहा कि आप चाहें तो उससे ब्याह कर लीजिए। राजा ने तीन दासियों को लड़की को देख आने को कहा।

तीनों दासियों ने क्या किया....


WD

उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो उसके रूप पर मुग्ध हो गईं, लेकिन उन्होंने यह सोचकर कि राजा उसके वश में हो जाएगा, आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है, राजा ने सेठ से इंकार कर दिया।

इसके बाद सेठ ने राजा के सेनापति बलभद्र से उसका विवाह कर दिया। वे दोनों अच्छी तरह से रहने लगे।

राजा हुआ उन्मादिनी पर मुग्ध....


FILE

एक दिन राजा की सवारी उस रास्ते से निकली। उस समय उन्मादिनी अपने कोठे पर खड़ी थी। राजा की उस पर निगाह पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गया। उसने पता लगाया। मालूम हुआ कि वह सेठ की लड़की है।

राजा ने सोचा कि हो-न-हो, जिन दासियों को मैंने देखने भेजा था, उन्होंने छल किया है। राजा ने उन्हें बुलाया तो उन्होंने आकर सारी बात सच-सच कह दी। इतने में सेनापति वहां आ गया। उसे राजा की बैचेनी मालूम हुई।

राजा ने निभाया अपना फर्ज...


FILE


उसने कहा, 'स्वामी उन्मादिनी को आप ले लीजिए।' राजा ने गुस्सा होकर कहा, 'क्या मैं अधर्मी हूं, जो पराई स्त्री को ले लूं?'

राजा को इतनी व्याकुलता हुई कि वह कुछ दिन में ही मर गया। सेनापति ने अपने गुरु को सब हाल सुना कर पूछा कि अब मैं क्या करूं? गुरु ने कहा, 'सेवक का धर्म है कि स्वामी के लिए जान दे दें।'
राजा की चिता तैयार हुई। सेनापति वहां गया और उसमें कूद पड़ा।

उन्मादिनी ने दी अपनी जान...


FILE

जब उन्मादिनी को यह बात मालूम हुई, तो वह पति के साथ जल जाना धर्म समझ कर चिता के पास पहुंची और उसमें जाकर भस्म हो गई।
इतना कहकर वेताल ने पूछा, 'राजन्, बताओ, सेनापति और राजा में कौन अधिक साहसी था?'

राजा ने दिया वेताल के प्रश्न का सही जवाब...


FILE

राजा ने कहा, 'राजा अधिक साहसी था; क्योंकि उसने राजधर्म पर दृढ़ रहने के लिए उन्मादिनी को उसके पति के कहने पर भी स्वीकार नहीं किया और अपने प्राणों को त्याग दिया।

सेनापति कुलीन सेवक था। अपने स्वामी की भलाई में उसका प्राण देना अचरज की बात नहीं।

FILE

असली काम तो राजा ने किया कि प्राण छोड़ कर भी राजधर्म नहीं छोड़ा।'
राजा का यह उत्तर सुनकर वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे पुन: पकड़कर लाया और तब उसने अठराहवीं कहानी सुनाई।

(समाप्त)