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बाल कविता : चश्मा घर
चश्मा घर से निकला चश्मा,दौड़ लगाकर आता।कूद-कूद कर बाबूजी के,कानों पर चढ़ जाता।फिर धीरे से उतर-उतर कर,आंखों पर छा जाता।और अंत में नाक पकड़ कर,वहीं टिका रह जाता।जब थक जाते बाबूजी तो,तुरंत कूद कर आता।बिना किसी की पूंछताछ,चश्मा घर में घुस जाता।