फनी बाल कविता : चूहे की सजा
हाथीजी के न्यायालय में,एक मुकदमा आया।डाल हथकड़ी इक चूहे को,कोतवाल ले आया।बोला साहब इस चूहे ने,रुपये पांच चुराए।किंतु बताया नहीं अभी तक,उनको कहां छुपाए।सुबह शाम डंडे से मारा,पंखे से लटकाया।दिए बहुत झटके बिजली के,मुंह ना खुलवा पाया।चूहा बोला दया करें हे,मुझ परहाथी भाई।कॊतवाल भालू है मूरख,उसमें अकल न आई।नोट चुराया था मैंने यह,बात सही है लाला।किंतु समझकर कागज मैंने,कुतर कुतर खा डाला।न्यायधीश हाथी ने तब भी,सजा कठोर सुनाई।'
कर दो किसी मूढ़ बिल्ली से,इसकी अभी सगाई।' तब से चूहा भाग रहा है,अपनी जान बचाने।बिल्ली पीछे दौड़ रही है,उससे ब्याह रचाने।