फनी कविता : काले रंग के कुत्ते राम
घर के बाहर रोज भौंकते,काले रंग के कुत्तेराम।रोज सुबह हाजिर हो जाते,दरवाजे पर पूंछ हिलाते,बासी खाते बड़े शौक से,काले रंग के कुत्तेराम।कई मित्र मिलने आ जाते,हाय-हलो करके गुर्राते,पर अपनी ही बात धौंकते,काले रंग के कुत्तेराम।चौराहे पर मीटिंग करते,एक-दूजे से चीटिंग करते,दिनभर गप्पे व्यर्थ ठोकते,काले रंग के कुत्तेराम।कहीं-कहीं रोटी मिल जाती,कभी-कहीं बोटी मिल जाती,जब तक दम है खूब नोंचते,काले रंग के कुत्तेराम।किंतु रात जब हो जाती है,सारी दुनिया सो जाती है,उठ-उठ करके बहुत चौंकते,काले रंग के कुत्तेराम।