बाल कविता : उड़न खटोला
- डॉ. प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
जा रहा था पढ़ने शाला,
कंधे पर लटकाकर झोला।
ठिठक गया था अजी देखकर,
नीलगगन में उड़न खटोला।।
रंग-बिरंगे रंगों से जी,
सजा हुआ था उड़न खटोला।
तेज गति से सर-सर, सर-सर,
उड़ा जा रहा था उड़न खटोला।।
सचमुच देखा मैंने उस दिन।
सपने में एक इक उड़न खटोला।।
साभार - देवपुत्र