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बालगीत : आखिर हम भी प्राणी हैं...

बालगीत : आखिर हम भी प्राणी हैं... - poem on machhar
हाथ हथौड़ा मारा हमको,
यह कैसी बेमानी है।
 

 
मच्छर हैं तो क्या होता है,
आखिर हम भी प्राणी हैं।
 
लहू एक रत्ती पी लेना,
यह तो बड़ा गुनाह नहीं।
इंसानों को हम लोगों के, 
जीवन की परवाह नहीं।
 
मच्छरमार युद्ध हर घर में,
घर-घर यही कहानी है।
 
लिए हाथ में गन के जैसे, 
चीनी रैकिट बैठे हो।
बाज मांस पर झपटे हम पर,
आप झपटते वैसे हो।
 
हाय! हमारी नस्ल मिटाने, 
की क्यों तुमने ठानी है?
 
आतंकी जब घुसें देश में,
तब तो कुछ न कर पाते।
मच्छरदानी में हम घुसते,
तो हथगोले चलवाते।
 
यह कैसी तानाशाही है,
यह कैसी शैतानी है।
 
बची-खुची जो कसर रही है,
ऑल आउट पूरी कर दे।
अपनी जहरीली गैसों से,
मौत हमारे सिर धर दे।
 
अब सिर के ऊपर से भैया,
सचमुच निकला पानी है।
 
इसका बदला हम भी लेंगे,
रक्तबीज बन जाएंगे।
मारोगे तुम एक अगर, 
हम सौ पैदा हो जाएंगे।
 
कभी नहीं अब इंसानों से,
मुंह की हमको खानी है।
 
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