शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. कविता
  4. New Year
Written By Author प्रभुदयाल श्रीवास्तव

बाल कविता : नए साल क्या-क्या बदलें?

बाल कविता : नए साल क्या-क्या बदलें? - New Year
बोलो-बोलो क्या-क्या बदलें,
हवा और क्या पानी बदलें?
स्वच्छ चांदनी रातें बदलें,
या फिर धूप सुहानी बदलें?


 
शीतल मंद पवन के झोंके,
आंधी के पीछे पछियाते।
मीठा-मीठा गप कर लेते,
कड़ुआ कड़ुआ थू कर जाते।
 
हवा आज बीमार हो गई,
पानी दवा नहीं बन पाया।
तूफानों ने हर मौसम को,
आंसू-आंसू खूब रुलाया।
 
बैतालों को बदल न पाए,
विक्रम की नादानी बदलें?
 
पहले अंगुली फिर पहुंचे पर,
पूरा हाथ पकड़ फिर लेता
बाहुबली सागर नदियों को,
किसी तरह काबू कर लेता।
 
क्यों विराट का लक्ष्य यही है,
लघुता को संपूर्ण मिटाना।
भले रोम जलता रहता हो,
नीरो से वंशी बजवाना।
मच्छर का अस्तित्व मिटाएं,
या फिर मच्छरदानी बदले?
 
ऐसे-ऐसे एक था राजा,
एक हुआ करती थी रानी।
इसी तरह बच्चों से कहती,
रहती रोज कहानी नानी।
 
जनता बहुत त्रस्त राजा से,
रानी भी आतंक मचाती।
प्रजा बेचारी डर के मारे,
खुलकर के कुछ कह न पाती।
जनता को जड़-मूल मिटा दें।
या फिर राजा-रानी बदलें?
 
पीली सरसों के घोड़े पर,
चढ़ बसंत फिर-फिर आ जाता।
मेरे घर के लगा सामने,
आम कभी अब न बौराता।
 
बड़े शहर की किसी सार में,
गाय-भैंस अब नहीं रंभाते।
तथाकथित छोटे आंगन में,
कार बाइक अब बांधे जाते।
दुनिया को तो बदल न पाए
क्या हम रामकहानी बदलें?
 
नए साल में क्या-क्या होगा,
वही कहानी वही तमाशे।
सच्चाई पर नहीं पड़ेंगे!
क्या झूठों के रोज तमाचे?
 
सड़क-गली में नहीं दिखेंगे,
क्या अब नहीं भिखारी बच्चे?
गांव-शहर में नहीं बचेंगे,
डाकू, गुंडे, चोर, उचक्के?
नहीं अतिथि जब संभल सके तो,
क्यों न फिर यजमानी बदलें?