शनिवार, 20 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. कविता
  4. Car Poems

बाल गीत : पापा कैसी कार मंगाई?

बाल गीत : पापा कैसी कार मंगाई? - Car Poems
पापा कैसी कार मंगाई।
आठ लाख में घर आ पाई। 
 

 
मुझको तो गाड़ी यह पापा, 
बहुत-बहुत छोटी लगती है। 
अपने घर के सब लोगों के, 
लायक नहीं मुझे दिखती है।
 
फिर भी जश्न मना जोरों से, 
घर-घर बांटी गई मिठाई। 
 
कार मंगाना ही थी पापा, 
तो थोड़ी-सी बड़ी मंगाते। 
तुम, मम्मी, हम दोनों बच्चे, 
दादा-दादी भी बैठ जाते।
 
सोच तुम्हारी क्या है पापा
मुझको नहीं समझ में आई। 
 
मां बैठेगी, तुम बैठोगे, 
मैं भैया संग बन जाऊंगी। 
पर दादाजी-दादीजी को, 
बोलो कहां बिठा पाऊंगी।
 
उनके बिना गए बाहर तो
क्या न होगी जगत हंसाई?
 
मम्मी-पापा उनके बच्चे, 
क्या ये ही परिवार कहाते
दादा-दादी, चाचा-चाची, 
क्यों उसमें अब नहीं समाते!
 
परिवारों की नई परिभाषा, 
मुझको तो लगती दुखदाई।।