बाल साहित्य : बंदर मामा, पहन पजामा
- क्षितिजा सक्सेना
बंदर मामा, पहन पजामा
निकले थे बाजार,
जेब में उनके कुछ थे पैसे
करना था व्यापार।
एक दुकान थी बड़ी सजीली
वहां बनी थी गर्म जलेबी,
मामा का मन कुछ यूं ललचाया
क्या लेना था याद न आया,
गर्म जलेबी खाई झट से
जीभ जल गई फट से, लप से।
फेंका कुर्ता फेंकी टोपी
और भागे फिर घर को,
दोबारा फिर खाने जलेबी
कभी न गए उधर को।