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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

जैन धर्म ग्रंथ और पुराण

Jain Dharma Granth | जैन धर्म ग्रंथ और पुराण
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जैन धर्म ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है। भगवान महावीर ने सिर्फ प्रवचन ही दिए। उन्होंने कोई ग्रंथ नहीं रचा, लेकिन बाद में उनके गणधरों ने, प्रमुख शिष्यों ने उनके अमृत वचन और प्रवचनों का संग्रह कर लिया। यह संग्रह मूलत: प्राकृत भाषा में है, विशेष रूप से मागधी में।

भगवान महावीर से पूर्व के जैन धार्मिक साहित्य को महावीर के शिष्य गौतम ने संकलित किया था जिसे 'पूर्व' माना जाता है। इस तरह चौदह पूर्वों का उल्लेख मिलता है।

जैन धर्म ग्रंथ (jain dharma granth) के सबसे पुराने आगम ग्रंथ 46 माने जाते हैं। इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है। समस्त आगम ग्रंथो को चार भागो मैं बांटा गया है:-1. प्रथमानुयोग 2. करनानुयोग 3. चरर्नानुयोग 4. द्रव्यानुयोग।

12 अंगग्रंथ:- 1. आचार, 2. सूत्रकृत, 3. स्थान, 4. समवाय 5. भगवती, 6. ज्ञाता धर्मकथा, 7. उपासकदशा, 8. अन्तकृतदशा, 9. अनुत्तर उपपातिकदशा, 10. प्रश्न-व्याकरण, 11. विपाक और 12. दृष्टिवाद। इनमें 11 अंग तो मिलते हैं, बारहवां दृष्टिवाद अंग नहीं मिलता।

12 उपांगग्रंथ :- 1. औपपातिक, 2. राजप्रश्नीय, 3. जीवाभिगम, 4. प्रज्ञापना, 5. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति 6. चंद्र प्रज्ञप्ति, 7. सूर्य प्रज्ञप्ति, 8. निरयावली या कल्पिक, 9. कल्पावतसिका, 10. पुष्पिका, 11. पुष्पचूड़ा और 12. वृष्णिदशा।

 
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10 प्रकीर्णग्रंथ :- 1. चतुःशरण, 2. संस्तार, 3. आतुर प्रत्याख्यान, 4. भक्तपरिज्ञा, 5. तण्डुल वैतालिक, 6. चंदाविथ्यय, 7. देवेन्द्रस्तव, 8. गणितविद्या, 9. महाप्रत्याख्यान 10. वीरस्तव।

6 छेदग्रंथ :- 1. निशीथ, 2. महानिशीथ, 3. व्यवहार, 4. दशशतस्कंध, 5. बृहत्कल्प और 6. पञ्चकल्प।

4 मूलसूत्र :- 1. उत्तराध्ययन, 2. आवश्यक, 3. दशवैकालिक और 4. पिण्डनिर्य्युक्ति।

2 स्वतंत्र ग्रंथ :- 1. अनुयोग द्वार 2. नन्दी द्वार।

जैन पुराणों का परिचय : जैन परम्परा में 63 शलाका-महापुरुष माने गए हैं। पुराणों में इनकी कथाएं तथा धर्म का वर्णन आदि है। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा अन्य देशी भाषाओं में अनेक पुराणों की रचना हुई है। दोनों सम्प्रदायों का पुराण-साहित्य विपुल परिमाण में उपलब्ध है। इनमें भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है।

मुख्य पुराण हैं:- जिनसेन का 'आदिपुराण' और जिनसेन (द्वि.) का 'अरिष्टनेमि' (हरिवंश) पुराण, रविषेण का 'पद्मपुराण' और गुणभद्र का 'उत्तरपुराण'। प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में भी ये पुराण उपलब्ध हैं। भारत की संस्कृति, परम्परा, दार्शनिक विचार, भाषा, शैली आदि की दृष्टि से ये पुराण बहुत महत्वपूर्ण हैं।

अन्य ग्रंथ:- षट्खण्डागम, धवला टीका, महाधवला टीका, कसायपाहुड, जयधवला टीका, समयसार, योगसार प्रवचनसार, पञ्चास्तिकायसार, बारसाणुवेक्खा, आप्तमीमांसा, अष्टशती टीका, अष्टसहस्री टीका, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीका, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, भगवती आराधना, मूलाचार, गोम्मटसार, द्रव्यसङ्ग्रह, अकलङ्कग्रन्थत्रयी, लघीयस्त्रयी, न्यायकुमुदचन्द्र टीका, प्रमाणसङ्ग्रह, न्यायविनिश्चयविवरण, सिद्धिविनिश्चयविवरण, परीक्षामुख, प्रमेयकमलमार्तण्ड टीका, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भद्रबाहु संहिता आदि।

-प्रस्तुति : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'