गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By शराफत खान

घरेलू हिंसा और इस्लाम

घरेलू हिंसा और इस्लाम -
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इंसान ने तरक्की जरूर की है, लेकिन इस तरक्की के साथ ही उसकी जिंदगी में कई बुराइयाँ भी आ गई हैं। महिला-पुरुष के समान अधिकार की बात करते इस 'सभ्य समाज' में घरेलू हिंसा जैसी बुराई तेजी से पनपी है। घरेलू हिंसा से महिलाओं पर अत्याचार होने की घटना आजकल की नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी है।

1984 में अमेरिका के सर्जन जनरल ने घरेलू हिंसा को राष्ट्र की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या घोषित किया था। आज भी हमें समाज के हर स्तर पर टॉप टू बॉटम घरेलू हिंसा की बात सुनाई-दिखाई पड़ती है। आज घरों में औरतों पर इस कदर जुल्म है कि आईएएस अफसर से लेकर एक बोझा ढोने वाला मजदूर घरों में अपनी पत्नी पर जुल्म करते पाए जाते हैं।

आज समाज का हर तबका इस सवाल का जवाब ढूँढता है कि आखिर घरेलू हिंसा को किस तरह रोका जाए, जिससे शांत और सभ्य पारिवारिक माहौल बने और हम समाज का एक जिम्मेदार और स्वस्थ हिस्सा बन सकें।

इस्लाम ने लगभग 1400 साल पहले इस सवाल का जवाब दे दिया था। पवित्र कुरआन एक आसमानी किताब है, जिसने मानव जीवन के हर पहलू पर उसे निर्देशित किया है।

घरेलू हिंसा पर इस्लामिक नजरिया- कुरआन आयत नंबर 4:34 में कहता है कि पुरुषों को महिलाओं के लिए जिम्मेदार बनाया गया है और उन्हें कुछ बेहतर चीजें दी गई हैं। पुरुषों का फर्ज है कि वे महिलाओं के लिए कमाएँ। महिलाओं का फर्ज है कि वे इस व्यवस्था को स्वीकार करें और अपने पति की गैरमौजूदगी में भी उसका सम्मान करें।

यदि पुरुष अपनी पत्नी को बागी पाएँ तो सबसे पहले उससे शांत स्वभाव से बात करें। अगर आपसी बातचीत से भी कोई हल नहीं निकलता हो तो पुरुष अपनी पत्नी से बात करना बंद करें और खामोशी से अपनी नाराजगी जताएँ। इसके बावजूद यदि पत्नी बागी है और जबानी हिंसा पर उतारू है तो पुरुष अपनी पत्नी को पीट सकते हैं। (भावार्थ)

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कुरआन के इस संदेश से आपको लग सकता है कि यहाँ औरतों को पीटने हिमायत की गई है, लेकिन ऐसा नहीं है। कुरआन पति-पत्नी का झगड़ा होने पर उसे हर स्तर पर सुलझाने का उपाय देता है। असल में कुरआन पति-पत्नी के मतभेद को मनौवेज्ञानिक तरीके से सुलझाता है।

कुरआन का पहला आदेश कि पत्नी से बात की जाए, पति-पत्नी दोनों को सुलह करने के लिए पर्याप्त समय देता है। इसके बाद भी अगर बात नहीं बनती है तो अगला आदेश है कि पत्नी को खामोश रहकर अपनी नाराजगी जाहिर की जाए। इससे पति-पत्नी में नया झगड़ा नहीं होगा और पति अपशब्द नहीं कह पाएगा और इसी तरह पति को पत्नी के कटुवचन नहीं सुनने पढ़ेगे। इसी दौरान दोनों को अपनी गलती का अहसास होगा और वे फिर से एक हो जाएँगे।

आयत नंबर 4:34 में औरतों को पीटने का हुक्म तभी है, जबकि पुरुष ऊपर दी गई दो प्रक्रियाओ के जरिये पत्नी से सुलह करने की कोशिश करे। अगर पुरुष अपनी पत्नी को पीटता है, उसे गाली देता है तो वह पूरी तरह से गैर-इस्लामिक है।

कुरआन में अगर औरतों को पीटने का संदर्भ आया है तो वह केवल विशेष परिस्थित्यों में ही है। जैसे कि औरत हिंसक हो जाए और हमला करे, लगातार अपशब्द कहे। कुरआन साफ कहता है कि बिना परिस्थिति विशेष के औरतों को पीटना जायज नहीं है, लेकिन उन परिस्थितियों का निर्धारण कुरआन ने कर दिया है।

कुरआन की ये शिक्षा अगर समाज में आम हो जाए तो घरेलू हिंसा की घटनाएँ जड़ से मिट जाएँगी और हम एक सभ्य और स्वस्थ समाज में रह पाएँगे।