मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. What are the similarities between the elected Prime Minister of Italy Meloni and Modi?
Written By राम यादव
Last Updated : शनिवार, 1 अक्टूबर 2022 (14:30 IST)

इटली की निर्वाचित प्रधानमंत्री मेलोनी और मोदी में कितनी समानताएं हैं?

इटली की निर्वाचित प्रधानमंत्री मेलोनी और मोदी में कितनी समानताएं हैं? - What are the similarities between the elected Prime Minister of Italy Meloni and Modi?
इटली की नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच बहुत ज्यादा न सही लेकिन कुछ तो समानताएं हैं। मोदी और मेलोनी दोनों ही साधारण परिवार से आते हैं, मोदी ने जहां चाय बेचने के काम किया, वहीं मेलोनी वेट्रेस का काम कर चुकी हैं। दोनों ही नेताओं से वामपंथी बुरी तरह चिढ़ते हैं। साथ ही मेलोनी और मोदी दोनों ही दक्षिणपंथी हैं। भारत में मोदी के बारे में तो लगभग सभी लोग जानते हैं। अब जानते हैं जॉर्जिया मेलोनी के बारे में...  
 
वामपंथी मेलोनी से चिढ़ते हैं : इटली के वामपंथी जॉर्जिया मेलोनी को फूटी आंखों देखना भी पसंद नहीं करते। तीन साल पहले वामपंथियों ने उन पर ताना कसा कि उनके पास न तो सही ढंग का परिवार है और न ईसाई मूल्य। दक्षिणपंथी पार्टियों की एक रैली में इसका उत्तर देते हुए मेलोनी ने कहा, 'मैं जॉर्जिया हूं। मैं एक मां हूं। मैं इतालवी हूं। मैं ईसाई हूं और यह सब मुझ से कोई छीन नहीं सकता!'
 
आलोचकों का मुंह बंद करने में जॉर्जिया मेलोनी हमेशा मुंहफट रही हैं। यह कला उन्हें उनके बचपन ने सिखाई है। जन्म 15 जनवरी 1977 को हुआ था। इटली की राजधानी रोम की एक साधारण-सी बस्ती गार्बातेल्ला में पली-बढ़ीं। जब मात्र एक साल की थीं, पिता उन्हें, उनकी मां और बहन अरियाना को छोड़कर स्पेन के सागरपारीय कैनरी द्वीपों में से एक पर जा बसे। 
 
पिता कट्टर कम्युनिस्ट थे और मां नवफ़ासिस्ट। मां ने अकेले ही दोनों बहनों को पाला-पोसा। घर चलाने के लिए वे छद्म नाम से प्रेमकथाओं वाले उपन्यास लिखा करती थीं। स्वाभाविक था कि जॉर्जिया के मन-मस्तिष्क पर मां के कष्टों और उनकी विचारधारा की ही सबसे अधिक छाप पड़ी है।
 
कई विदेशी भाषाएं जानती हैं : अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है कि 15 साल की आयु में वे उसी नवफ़ासिस्ट पार्टी की युवा शाखा की सदस्य बन गई थीं, उनकी मां भी जिसकी सदस्य थीं। मां के साथ उनकी आज भी बहुत निकटता है। पिता के साथ संपर्क 12 साल की आयु में ही टूट गया था। हाई स्कूल की पढ़ाई एक ऐसे विशेष स्कूल में की, जहां कई विदेशी भाषाएं पढ़ाई जाती थीं। इसलिए वे मातृभाषा इतालवी के अलवा फ्रेन्च, स्पेनिश और अंग्रेज़ी भी फ़र्राटे से बोल लेती हैं। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद घरों में बच्चों की देखभाल और होटलों आदि में वेट्रेस, बार-कीपर और डिस्कोथेक सहायक का भी काम किया है।
 
बात दूर की कौड़ी भले ही लगे, पर जॉर्जिया मेलोनी की निम्नवर्गीय जीवनकथा और भारत के एक छोटे-से रेलवे स्टेशन पर कभी चाय बेचने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवनकथा में कई आश्चर्यजनक समनताएं हैं। दोनों की विचारधारा भी दक्षिणपंथी ही हैं।
 
6 साल की बेटी की अविवाहित मां : 21 साल की आयु में मेलोनी रोम की नगर पार्षद और 29 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय संसद की सांसद निर्वाचित हुईं। जब 31 वर्ष की थीं, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री सिल्वीयो बेर्लुस्कोनी ने उन्हें इटली के इतिहास का सबसे युवा मंत्री बनाया था। और अब उनका इटली की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनना भी लगभग सुनिश्चित है। वे एक ऐसी पहली महिला प्रधानमंत्री भी कहलाएंगी, जो 6 साल की एक बेटी की मां हैं, पर विवाहित नहीं हैं। उनके जीवनसाथी एक पत्रकार हैं। ऐसी बातें प्रगतिशील यूरोपीय कम्युनिस्टों के जीवन में तो अक्सर, पर रूढ़िवादी फ़ासिस्टों के जीवन में शायद ही कभी मिलती हैं।
 
यूरोपीय मीडिया बहुत ही पूर्वाग्रही है। उदाहरण के लिए, भारत की बीजेपी व उसकी सरकार को परोक्ष रूप से फ़ासीवादी बताने के लिए बीजेपी के नाम के आगे 'हिंदू राष्ट्रवादी' विशेषण ज़रूर लगाया जाता है। ऐसा कोई धार्मिक विशेषण दुनिया कि किसी दूसरी पार्टी के नाम के आगे नहीं लिखा या बोला जाता है, भले ही वह कितनी भी इस्लामवादी या ईसाई-पंथी हो। यूरोप में 'राष्ट्रवाद' को फ़ासीवाद के समान ही निंदनीय माना जाता है, जबकि व्यवहार में कोई यूरोपीय पार्टी या सरकार अपने राष्ट्रीय हितों की रत्ती-भर भी उपेक्षा नहीं करती।
 
यूरोपीय मीडिया का नया धर्मसंकट : यूरोपीय मीडिया और सरकारों के लिए अब एक बड़ा धर्मसंकट यह पैदा हो गया है कि यूरोप के ही कई देशों में सच्चे फ़ासिस्टों-जैसी घोर-दक्षिणपंथी पार्टियां चुनावों में सत्ता की ड्योढ़ी तक पहुंचने लगी हैं। इसी वर्ष अप्रैल में हुए फ्रांसीसी राष्ट्रपति के चुनाव के पहले दौर में घोर-दक्षिणपंथी, यानी लगभग फ़ासीवादी मरीन लेपेन, राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों से केवल 4.7 प्रतिशत मतों से पीछे रह गई थीं वर्ना वे ही आज राष्ट्रपति होतीं। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्तोर ओर्बान भी उग्र दक्षिणपंथी के तौर पर बदनाम हैं। पर उनकी भी पार्टी इस साल पूर्ण बहुमत के साथ पुनः चुनाव जीत गई।
स्वीडन भी दक्षिणपंथी राह पर : दुनिया में सबसे अधिक कल्याणकारी समाज होने के लिए प्रसिद्ध स्वीडन में 11 सितंबर को संसदीय चुनाव थे। केवल 3 सीटों के अंतर से ही सही, वहां की दक्षिणपंथी पार्टियों का गुट चुनाव जीत गया। मुख्य कारण यही था कि अब तक की सरकारों की कल्याणकारी उदारतावादी नीतियों से स्वीडन में रह रहे मध्यपूर्व के विदेशियों द्वारा सड़कों पर 'गैंग-वॉर', हत्याकांड और बलात्कार, लूट-पाट और दंगे-फ़साद इतने बढ़ गए हैं कि वहां के मूल निवासियों की नाक में दम हो गया है। स्वीडन में बहुत-सी जगहें ऐसी हैं, जहां पुलिस भी जाने की हिम्मत नहीं करती। देश के सर्वोच्च पुलिस अधिकारी को टेलीविज़न पर आ कर जनता से कहना पड़ता है कि बिना उसके सहयोग की पुलिस कुछ नहीं कर सकती। 
 
इटली भी एक ऐसा देश है, जहां माफ़िया सरदारों और अपराधी गिरोहों की तूती बोलती रही है। जान हथेली पर लेकर समुद्री रास्तों से आ रहे शरणार्थियों की निरंतर बढ़ती संख्या नया सिरदर्द बन गई है। दुनिया के हर कैथलिक देश की तरह भ्रष्टाचार का भी पहले से ही बोलबाला रहा है। सीधी उंगली से घी नहीं निकलता। इसीलिए जब नरमाई और उदारता की राजनीतिक विचारधाराओं से काम नहीं बनता, तब कठोरता और अनुदारता का सहारा लेना ही पड़ता है। इटली की जनता जॉर्जिया मेलोनी से यही अपेक्षा करती है। दूसरों को इसमें भले ही फ़ासीवाद का पुनरुत्थान ही क्यों न दिखता हो।
Edited by : Vrijendra Singh Jhala
ये भी पढ़ें
गांधीजी से प्रेरित एक जर्मन का विश्व राजनीतिक चिंतन