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Last Updated : बुधवार, 19 अक्टूबर 2016 (14:30 IST)

जानिए अरब देश क्यों खौफ खाते हैं इसराइल से

जानिए अरब देश क्यों खौफ खाते हैं इसराइल से - Israel
इसराइल एक बहुत छोटा देश है जिसकी आबादी करीब 80 लाख यहूदियों की है, लेकिन इस छोटे से देश से कई इस्लामी देशों में बसे 150 करोड़ मुस्लिम क्यों खौफ खाते हैं? आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का पूरे अरब देशों में आतंक है, वह बेरहमी से लोगों का कत्लेआम कर रहा है, लेकिन अब तक उसने इसराइल की तरफ एक गोली भी नहीं चलाई है, जबकि इसराइल, सीरिया का पड़ोसी देश है, एक भी इजराइल के नागरिक को छुआ भी नहीं गया, क्योंकि उनको पता है जहां उन्होंने इसराइल को थोड़ा भी छेड़ा, अगले ही पल या तो इसराइल की ओर से मिसाइल दाग दिया जाएगा या इसराइली सेना चढ़ाई कर देगी। हालाँकि इसराइल की इस आक्रामकता और कार्रवाई के कारण मानवाधिकार के सवाल भी उठते रहे हैं। इसराइल ने इसकी परवाह कम ही की है। 
इसराइल का यह रुतबा ऐसे ही नहीं बना है। बात है इसराइल के बनने की, जब हिटलर से जान बचाकर यहूदी लोग इसराइल पहुंचे थे और इसराइल बनाया था, तब अरब के मुस्लिमों ने पहली बार इसराइल पर 1948 में हमला किया था। उस समय इसराइल बना ही था, उनके पास कोई बड़ी सेना या धन, गोला-बारूद नहीं था, परंतु फिर भी इसराइल ने अरब को 1948 में बड़ी आसानी से हरा दिया। तब से लेकर अब तक अरब देशों ने 6 बार इसराइल से युद्ध लड़ा है और इसराइल ने हर बार मुस्लिम देशों को हराया है।
 
इसी बात को अगर आंकड़ों की नजर से देखें तो 1948 से अब तक अरब-इसराइल युद्धों में इसराइल के 22000 सैनिक शहीद हुए हैं वहीं मुस्लिम देशों के 91000 से अधिक मारे गए हैं। इसराइल ऐसा देश है जो चारों ओर से मुस्लिम देशों से घिरा हुआ है फिर भी किसी मुस्लिम देश या आईएसआईएस या मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की मजाल नहीं कि इसराइल को छेड़ सकें।
अगर यूं कहा जाए कि इसराइल, मुस्लिम देशों का काल है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। साथ ही इसराइल खुद पहले हमला नहीं करता, बस उसको कोई छेड़े तो इसराइल उसे छोड़ता नहीं है। इस तुलना मेंं एक ये दिक्कत ज़रूर है कि इसराइली हमलों में कई बार आम नागरिक भी मारे गए हैं जिसमें बच्चे और महिलाएँ भी शामिल हैं। इसको लेकर इसराइल को अपनी ही सेना के ख़िलाफ़ जाँच तक बिठानी पड़ी है। बच्चों और महिलाओं के मारे जाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसराइल की आलोचना भी हुई है। 
दूसरी ओर भारत के हालिया चर्चित लक्ष्य्यभेदी हमले केवल आतंकी ठिकानों पर किए गए थे। यहाँ तक की पाकिस्तानी सैनिक भी तब मारे गए जब वो आतंकियों के बचाव में आगे आए। इसीलिए भारत की कार्रवाई तो दरअसल ज़्यादा सधी हुई और बेहतर मानी जाएगी। 
 
मोसाद और सेना का खौफ  : इसराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद, सेना का तो ऐसा खौफ है कि मोसाद के डर से किसी आतंकी संगठन के मुखिया, किसी मुस्लिम देश के नेता की औकात नहीं कि इसराइल की तरफ टेढ़ी आंख करके देखे। जर्मनी के म्यूनिख ओलिंपिक में जिहादी तत्वों ने इसराइल के 11 खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी और वे जिहादी तत्व किसी मुस्लिम देश में जा छुपे थे, जिनकी संख्या सैकड़ों में थी, लेकिन इसराइल की मोसाद के 30 जवान उस मुस्लिम देश में घुसकर उन जिहादियों को मार आए थे और मोसाद का सिर्फ एक जवान शहीद हुआ था। 
एक बार एक मुस्लिम संगठन के लोगों ने कुछ इसराइली लोगों की हत्या कर दी, फिर सब फरार हो गए। सबसे अपना देश और नाम हुलिया बदल दिया। पर इसराइल की मोसाद इतनी खौफनाक है, उसके जासूसों ने 25 साल बाद उन कातिलों को दक्षिण अमेरिका के एक होटल में जाकर खत्म कर दिया।
 
भारत को इसराइल से यह सीखने की जरूरत है, अगर इसराइल की सी आक्रामकता 10 प्रतिशत भी भारत में आ जाए तो पाकिस्तान, चीन क्या हर जिहादी देश दुनिया के नक्शे से मिट जाए।
 
इसराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद दुनिया की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी मानी जाती है और कहा जाता है कि ओसामा को पकड़ने के लिए अमेरिका ने भी मोसाद की मदद मांगी थी। इसराइल अपने ऊपर हमला करने वाले आतंकियों को चुन-चुनकर मारने के लिए मशहूर है फिर चाहे वो दुनिया के किसी भी देश में छिप जाएं।
 
रैथ ऑफ गॉड' ऑपरेशन :1972 के म्यूनिख ओलिंपिक खेलों के दौरान फिलीस्तीन और लेबनान के आतंकवादियों ने 11 इसराइली खिलाड़ियों की निर्मम हत्या कर दी थी। पूरी दुनिया इस हमले से सकते में आ गई थी। 
 
इस हमले के बाद जर्मनी सेना ने कार्रवाई करते हुए 5 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था, लेकिन 3 आतंकी भागने में कामयाब हो गए थे जिनमें से एक इस हमले का मास्टरमाइंड भी था। 
 
इसराइल अपने खिलाड़ियों की हत्या का बदला लेने के लिए तत्पर था और इस काम के लिए उसने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद को तैनात किया। मोसाद ने ' रैथ ऑफ गॉड' नाम से एक खुफिया ऑपरेशन चलाया और उन तीनों आतंकियों को ढूंढकर मार दिया।
 
वहीं दूसरी और भारत अपने ऊपर होने वाले आतंकी हमलों की केवल निंदा ही करता आया है। आतंकियों नें मुंबई में घुस के हमला किया मगर भारत ने सिर्फ कड़ी निंदा की। उस समय की कांग्रेस सरकार ने वोटबैंक की तुष्टिकरण के लिए आतंकी ठिकानों पर कोई कार्रवाई नहीं की और सेना को हमला न करने के आदेश दिए गए। 
 
इसके बाद हाल ही में पाकिस्तानी आतंकियों नें पठानकोट एयरबेस पर भी हमला किए और कई जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा मगर भारत सिर्फ पकिस्तान से बात ही करता नजर आया। और कुछ समय पहले उड़ी में सेना के कैंप पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें सेना के 20 जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा। इसके बाद से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने सरकार को इसराइल की तर्ज पर काम करने को कहा।
 
इसी सोच का नतीजा है सर्जिकल स्ट्राइक, जिसकी एक बार की कार्रवाई से ही पाकिस्तान को सांप सूंघ गया। इसी सोच के बल पर भारत, पाकिस्तान और चीन का मुकाबला कर सकता है अन्यथा उसे इन दोनों देशों के आक्रामक विस्तारवाद का सामना करना पड़ेगा। 
 
हमें इजराइल के ऑपरेशन ऐंटेबे को अपना आदर्श बना लेना चाहिए ताकि चीन और पाकिस्तान जैसे देश कुछ करने से पहले सौ बार सोचें। इसराइल एक ऐसे मजबूत इरादों वाला छोटा-सा देश है जो शायद दुनिया में किसी भी बड़ी से बड़ी ताकत से नहीं डरता, उसकी मारक क्षमता कमाल की है, उनके निर्णय तेज हैं और केवल देश हित के लिए हैं और उसने झुकना तो सीखा ही नहीं है।
 
अगले पन्ने पर, रोंगटे खड़ा कर देने वाला ऑपरेशन....
 

इसराइल देश के सामने आने वाले संकट का सामना कैसे करता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण ऑपरेशन एंटेबे था। 4 जुलाई 1976 को एक संकट के बाद इसराइल द्वारा किए गए एक ऐसे खतरनाक ऑपरेशन की सच्ची कहानी है जिसको पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और दिमाग सुन्न हो जाएगा।
 
अपने बंधक नागरिकों को छुड़ाने के लिए 39 साल पहले इसराइल ने युगांडा में जाकर जिस दुस्साहसी अभियान को अंजाम दिया था वह एक अतुलनीय मिसाल है। दरअसल 4 जुलाई 1976 को खत्म हुए इस संकट की शुरुआत 27 जून को हुई थी। तेल अवीव से पेरिस के लिए रवाना हुई एक फ्लाइट ने थोड़ी देर एथेंस में रुकने के बाद उड़ान भरी ही थी कि पिस्टल और ग्रेनेड लिए चार यात्री उठे और यात्रियों और पायलट्स को धमकाने के बाद विमान को कब्जे में ले लिया। ये आतंकवादी विमान को पहले लीबिया के बेनगाजी और फिर युगांडा के एंटेबे हवाई अड्डे ले गए।

बाद में पता चला कि यह 'पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन फॉर फिलिस्तीन' के आतंकवादियों का काम था। युगांडा के तत्कालीन तानाशाह ईदी अमीन की सहानुभूति भी अपहरणकर्ताओं के साथ थी। यहां यहूदी बंधकों को अलग कर दिया गया और बाकी यात्रियों को रिहा कर दिया गया। इसके बाद अपहरणकर्ताओं ने बंदूक के दम पर खुलेआम मांग की कि इसराइल, कीनिया और तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी की जेलों में रह रहे 54 फिलीस्तीन कैदियों को रिहा किया जाए नहीं तो वे बंधकों को एक-एक करके मारना शुरू कर देंगे।
 
इसराइल के यात्रियों की जान खतरे में थी और देश में भय और उदासी का माहौल बन गया था और किसी को समझ नहीं आ रहा था कि यात्रियों को कैसे बचाया जाएगा, क्योंकि बचाने का मिशन इतना पेचीदा व संवेदनशील था कि इसमें जवाबी कार्रवाई करना मुश्किल था, इसलिए इसराइल ने अपने सब कूटनीतिक संबंधों का उपयोग करते हुए अलग-अलग कई देश की सरकारों से युगांडा और अपहरणकर्ताओं पर दबाव डलवाया कि वे बंधकों को छोड़ दें। इसराइल ने इसके लिए अपने मित्र और सहयोगी अमेरिका से भी बात की, लेकिन फिर भी बात नहीं बन पाई। संकट गहराने लगा था।
 
सरकार ने आगे चलकर आखिरकार एक विकल्प पर सहमति दी और बड़ा खतरा उठाने की ठान ली गई। आख़िरकार देश की अस्मिता और 54 नागरिकों की जान का सवाल था। इसके बाद 4 जुलाई को इसराइल से कुछ फैंटम जेट लड़ाकू विमानों के साथ 4 हरक्यूलिस विमान को लेकर रवाना हुए और इन विमानों में सेना के सबसे काबिल 200 सैनिक सवार थे। योजना इस तरह बनाई गई थी कि युगांडा के सैनिकों को इस तरह का आभास दे कि इन विमानों में राष्ट्रपति ईदी अमीन विदेश यात्रा से वापस लौट रहे हैं। विदित हो कि अमीन उन दिनों एक आयोजन में भाग लेने के लिए मॉरीशस गए हुए थे।
 
मिशन के तहत खतरा उठाकर काफी नीची उड़ान भरते हुए इसराइली विमान मिस्र, सूडान और सऊदी अरब के रडारों को चकमा देने में कामयाब रहे। इसराइली सैनिकों ने युगांडा के सैनिकों की वर्दी पहनी हुई थी। आपको बता दें कि केवल एक तरफ का सफर लगभग सात घंटे का था और इन विमानों को पूरी उड़ान के समय नीचे ही उड़ना था। इस कारण खास तैयारी करते हुए हवा से हवा में ईंधन भरने वाले विमान ले जाए गए थे। आप समझ सकते हैं उस समय तकनीक भी कम उन्नत रही होगी।
 
और फिर जब युगांडा के एंटेबे एयरपोर्ट पर एक जहाज उतरा और उसमें से काले रंग की एक मर्सिडीज और दो लैंडरोवर गाड़ियां निकलकर टर्मिनल की तरफ बढ़ने लगीं। हक्के -बक्के देखते हुए युगांडा के सैनिक चकित रह गए क्योंकि राष्ट्रपति ईदी अमीन भी इसी अंदाज में आते थे। लेकिन युगांडाई सैनिक इसलिए हैरान थे कि एक हफ्ते पहले ही अमीन ने काली की जगह सफेद मर्सिडीज का इस्तेमाल शुरू कर दिया था पर उनकी हिम्मत नहीं हुई कि इस काफिले को रोक लें और तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी।  
 
इससे पहले की वे कुछ भांप पाते और उनके हाथ अपनी राइफलों तक जाते, कार और उसके पीछे दो लैंडरोवर गाड़ियों में बैठे इसराइली कमांडो हरकत में आ चुके थे और उन्होंने साइलेंसर लगी बंदूकों से इन सैनिकों को ढेर कर दिया। ताबड़तोड़ पर बड़ी चालाकी से उन पर ऐसा वार किया गया था कि वहां उनके लिए संभलने का कोई मौका नहीं था। वापस चलने से पहले सैनिकों की गिनती की गई। इसके बाद हवाई अड्डे पर खड़े युगांडा के लड़ाकू विमान ध्वस्त कर दिए गए ताकि पीछा किए जाने की संभावना खत्म हो जाए।
 
इसके बाद कमांडो उस टर्मिनल की तरफ बढ़े जहां एक हफ्ते पहले बंधक बनाए गए इसराइली यात्रियों को रखा गया था। उन्होंने यात्रियों से लेट जाने के लिए कहा और उनसे हिब्रू में पूछा कि उन्हें बंधक बनाने वाले अपहरणकर्ता कहां हैं? यात्रियों ने हॉल में खुलने वाले एक दरवाजे की तरफ इशारा किया। कमांडो उधर बढ़े और जब तक अपहरणकर्ता संभल पाते पलक झपकते ही बिजली की भांति उन पर टूट पड़े इसराइली लड़ाकों ने उन्हें ढेर कर दिया।
 
थोड़ी ही देर में तीन और इसराइली विमान भी रनवे पर उतर चुके थे। इनमें से दो में इसराइली सैनिक थे और एक खाली था जिनमें बंधकों को वापस ले जाया जाना था। ऑपरेशन शुरू होने के 20 मिनट बाद ही बंधकों को खाली विमान में ले जाया जाने लगा। पर युगांडा के सैनिकों को जैसे ही सुध आई कि कुछ गड़बड़ है तो युगांडाई सैनिकों की तरफ से गोलीबारी तेज हो गई। हवाई अड्डे की रोशनियां बंद कर दी गई थीं।
 
लेकिन इसराइली कमांडोज ने खुद को बड़े नुकसान से बचाते हुए अभियान जारी रखा। इसराइली विमानों के एंटेबे में उतरने के एक घंटे के भीतर इस दुस्साहसी बचाव अभियान का सबसे खतरनाक हिस्सा खत्म हो चुका था। वापस चलने से पहले सैनिकों की गिनती की गई। इसके बाद हवाई अड्डे पर खड़े युगांडा के लड़ाकू विमान ध्वस्त कर दिए गए ताकि पीछा किए जाने की संभावना खत्म हो जाए। इस मिशन में सभी सात अपहरणकर्ता मारे गए और 20 युगांडाई सैनिक भी। पूरे अभियान में इसराइल का सिर्फ एक सैनिक मारा गया। ये लेफ्टिनेंट कर्नल नेतन्याहू थे जिन्हें एक गोली लगी थी। वे घायल हो गए थे और इसराइल वापस लौटते हुए विमान में ही उनकी मौत हो गई। 
 
आखिरकार इसराइली सैनिक बचाए गए बंधकों के साथ वापस तेल अवीव में उतरे। उनके स्वागत में लोगों की बड़ी भीड़ जमा थी। पूरे मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री रॉबिन भी इन सैनिकों के सम्मान में एयरपोर्ट पर मौजूद थे। इस तरह इसराइली सेना और कमांडोज ने वह भी करके दिखा दिया जो कि असंभव और अकल्पनीय माना जा रहा था। सोचिए ऐसी है इसराइल की सेना और उनके कमांडोज। उन्हीं बहादुर सैनिकों के नक्शेकदम पर भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक का कारनामा दिखाया।