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Last Modified: गुरुवार, 7 जुलाई 2016 (10:56 IST)

बांग्लादेशी सरकार गिराना चाहते हैं जिहादी...

बांग्लादेशी सरकार गिराना चाहते हैं जिहादी... - Banglaseshi government
बांग्लादेश में हाल में हुई घटनाएं ये दर्शाने के लिए काफी हैं कि देश में जिहादी ताकतें सक्रिय हैं और ऐसा लगता है कि ये अल-कायदा या आईएस अथवा दोनों के बिना घरेलू आतंकवादी नेटवर्क शेख हसीना सरकार को गिराना चाहते हैं। अगर हसीना सरकार देश में सामान्य स्थिति बहाल करने में सफल नहीं होती है, तो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का संकट में फंसना स्वाभाविक है। 
 
बांग्लादेश में हत्याओं के दौर से पश्चिमी देशों का कारोबारी निवेश कम हो सकता है और देश में जो उदार टेक्नोक्रेट्‍स हैं, वे भी खुद को असुरक्षित महसूस करेंगे। देश के अल्पसंख्यक हिन्दू सबसे ज्यादा भयभीत हैं।
 
पिछले शुक्रवार को बांग्लादेश की राजधानी के सबसे ज्यादा आकर्षक इलाके में 20 लोगों की हत्या की आशंका देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को थी। पर जब यह हमला हुआ तब सरकार ज्ञात आतंकवादियों के सहयोगियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान चला रही थी। पुलिस ने हजारों नहीं, तो कम से कम सैकड़ों की संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया था और इनके पास से विस्फोटक, बंदूकें, कुल्हाड़े और जिहादी साहित्य बरामद किया था। जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें से ज्यादातर के संबंध घरेलू प्रतिबंधित जिहादी गुटों या संगठनों जैसे जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश, हिज्ब उत तहरीर, हरकत-उल जिहाद-अल इस्लामी बांग्लादेश (हूजी-बी) और अंसारुल्लाह टीम से थे।
 
पिछले कुछ सप्ताहों से वे लगातार हत्याएं करते रहे हैं जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक हिन्दू थे। हिन्दू, पुजारी, बौद्ध साध्वी या कैथोलिक ग्रोसरी स्टोर के मालिक इनके निशाने पर रहे हैं। इस्लामी कट्‍टरपंथियों के आलोचक ब्लॉगर, छात्र और वे लोग, जो कि इस्लामीकरण का विरोध करते हैं, उनकी भी कुल्हाड़ों से काटकर हत्या कर दी गई। मरने वालों में उदार बुद्धिजीवी और एक एलजीबीटी दंपति भी शामिल रहे हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार लगातार इस बात से इंकार करती रही है कि बांग्लादेश में अल-कायदा या इस्लामिक स्टेट के संगठित गिरोह सक्रिय हैं। हालांकि इस बीच आतंकी घटनाओं की संख्या बढ़ी है और इनका दायरा भी विस्तृत हुआ है। इन ज्यादतियों को देखते हुए भी सरकार चुप रही, क्योंकि उसे डर था कि उसकी कार्रवाई से उग्रवादी तत्वों की कड़ी प्रतिक्रिया होगी। हालांकि यह प्रतिक्रिया किसी न किसी तौर पर सामने आई।
 
ऐसा लगता है कि या तो अल-कायदा या स्थानीय उग्रवादी आईएस के साथ या उनके बिना भी अपनी कार्रवाइयों को अंजाम देते हैं। बांग्लादेश के गृहमंत्री असदुज्जमां खान का कहना है कि इस हमले में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का हाथ नहीं है, बल्कि यह स्थानीय स्तर पर पनपा हुआ आतंकवाद है जिसे पाकिस्तान के जासूसी संगठन आईएसआई का सहयोग मिला हुआ है। वे इस आतंकवादी हमले के लिए जमीअतुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) को दोषी मानते हैं। शेख हसीना वाजेद के राजनीतिक सलाहकार हुसैन तौफीक इमाम ने भी इस हमले के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी को ही दोषी माना है। 
 
वहीं दूसरी ओर, आईएस ने इस हमले की जिम्मेदारी स्वीकार की है और उसने हमले के कुछ ही देर बाद हमलावरों और हमले की तस्वीरें भी जारी कर दीं। क्या इसका अर्थ यह है कि आईएस इस हमले की झूठी जिम्मेदारी ले रहा है या फिर यह कि बांग्लादेश सरकार अपने देश में आईएस की उपस्थिति होने को स्वीकार नहीं करना चाहती? जब तक पूरी तरह से तथ्य सामने न हों, तब तक अंतिम रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ सच्चाई दोनों ही दावों में है।
 
पिछले हमलों में और ताजा वारदात में भी बांग्लादेश के स्थानीय निवासी ही शामिल थे, किसी विदेशी आतंकवादी की सक्रिय उपस्थिति इनमें नहीं देखी गई। जमाते-इस्लामी के लोग बांग्लादेश में कट्टर व उग्र धार्मिक भावनाएं भड़काने में सबसे आगे हैं और यह काफी संभव है कि आईएसआई से उन्हें समर्थन भी मिलता हो। जमाते-इस्लामी ने बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के वक्त भी पाकिस्तान का साथ दिया था। 
 
लेकिन आज के दौर में यह भी मुमकिन है कि आतंकवादियों का इंटरनेट के जरिए या कुछ एजेंटों के जरिए आईएस से भी संपर्क रहा हो और आईएस के प्रचार से वे प्रभावित हुए हों। आईएस से जुड़ने के लिए सीरिया या इराक जाना जरूरी नहीं है, अब दुनिया के तमाम देशों में ऐसे नौजवान हैं, जो कभी सीरिया या इराक नहीं गए, लेकिन आईएस के समर्थक हैं। इसलिए यह फर्क कर पाना बहुत मुश्किल है कि कौन आईएस से जुड़ा है और कौन आईएसआई से।
 
यह सही है कि भारतीय उपमहाद्वीप में फिलहाल आईएस की सक्रिय उपस्थिति नहीं है और यहां ज्यादातर आतंकवाद पाकिस्तान से पनपा है, लेकिन आईएस की मौजूदगी की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। बांग्लादेश सरकार की हिचकिचाहट शायद इस वजह से है कि आईएस की मौजूदगी को स्वीकार करने से उसके यहां होने वाले विदेशी निवेश पर असर पड़ेगा।
 
एक ओर आईएसआई की कोशिश बांग्लादेश में कट्टर इस्लामी ताकतों का वर्चस्व बनाने की हो सकती है, तो दूसरी ओर ऐसी भी खबरें हैं कि आईएस बांग्लादेश को केंद्र बनाकर भारत और पाकिस्तान में अपना जाल फैलाने की कोशिश में है। ऐसे में, यह बता पाना मुश्किल है कि इन दोनों की सीमाएं कहां मिलती हैं।
 
इन आतंकवादी गुटों के उद्देश्य भी अलग-अलग हैं। अमेरिका जैसे देशों में रह रहे एक पूर्व इस्लामी सिविल सर्वेंट का कहना है कि (1). बांग्लादेश के वि‍पक्षी दल मिलकर लोकप्रिय प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को गिराना चाहते हैं। (2). बांग्लादेश के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल 19 दलों की विरोधी जमात-ए-इस्लामी के घरेलू आतंकवादियों से संबंध हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) जैसी पार्टी वर्तमान सरकार की भारत समर्थक झुकाव की बजाय पाकिस्तान के साथ करीबी रिश्ते चाहती है और इस काम में आईएसआई सक्रिय है। पाक की आईएसआई का आतंकवादी संगठन, लश्कर-ए-तैयबा से करीबी रिश्ता है और यह बांग्लादेश से भी अपने एजेंटों की नियुक्ति करती है। 
 
वास्तव में, पाकिस्तान सरकार और आईएसआई का मुख्य उद्देश्य यह है कि यह अल-कायदा और आईएस के साथ मिलकर बांग्लादेश की सरकारी धर्मनिरपेक्ष परंपरा को छिन्न-भिन्न कर दे और वहां सभी धर्मों के ऊपर इस्लाम को ले आए। वे पाकिस्तान की भांति बांग्लादेश में भी शरिया कोर्ट्‍स और ईश निंदा कानून लागू करवाना चाहते हैं।
 
अगर स्थितियां बिगड़ती हैं तो राजनीतिक दलों की बजाय सेना को भी 'कानून-व्यवस्था' बहाल करने का मौका मिल सकता है और ऐसा नहीं है कि बांग्लादेश में अतीत में सेना का शासन न रहा हो। इसलिए आतंकवादी संगठन हों, अल-कायदा या आईएस या फिर आईएसआई, सभी मिलकर बांग्लादेश को इतना अस्थिर कर देना चाहते हैं ताकि वहां इस्लामी कट्‍टरपंथियों को जड़ें जमाने का मौका मिल जाए।
 
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