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Last Updated : शनिवार, 16 जुलाई 2022 (01:19 IST)

Sri Lanka Crisis : श्रीलंका में राजपक्षे बंधुओं की विदेश यात्रा पर 28 जुलाई तक रोक, सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

Mahinda Rajapaksa
कोलंबो। श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और पूर्व वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे के देश छोड़ने पर 28 जुलाई तक रोक लगा दी। शीर्ष अदालत ने श्रीलंका में आर्थिक संकट पर वैश्विक नागरिक संस्था संगठन 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।

याचिका 17 जून को दायर की गई थी। याचिका में अदालत से राजपक्षे बंधुओं, सेंट्रल बैंक के पूर्व गवर्नर अजित निवार्ड काबराल और पूर्व वित्त सचिव एसआर अत्तगाला की विदेश यात्रा को प्रतिबंधित करने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि ये लोग श्रीलंका के विदेशी कर्ज का बोझ काफी बढ़ने, ऋण अदायगी में चूक और मौजूदा आर्थिक संकट के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के छोटे भाई बासिल ने मंगलवार को संकटग्रस्त देश छोड़कर जाने की कोशिश की थी। गोटबाया राजपक्षे खुद अपनी सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन के चलते बुधवार को मालदीव भाग गए थे और बाद में गुरुवार को वहां से सिंगापुर चले गए थे।

गौरतलब है कि 2.2 करोड़ की आबादी वाला देश श्रीलंका सात दशकों में सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है, जिसके चलते लोग खाद्य पदार्थ, दवा, ईंधन और अन्य जरूरी वस्तुएं खरीदने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। देश में विदेशी मुद्रा का भीषण संकट है और इसके चलते वह विदेशी कर्ज का भुगतान भी नहीं कर पा रहा।

गोटबाया राजपक्षे के उत्तराधिकारी के लिए विक्रमसिंघे का समर्थन करेगी एसएलपीपी : श्रीलंका की सत्तारूढ़ एसएलपीपी पार्टी ने शुक्रवार को गोटबाया राजपक्षे के उत्तराधिकारी का चुनाव करने के लिए अगले हफ्ते होने वाले संसदीय मतदान में अंतरिम राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का समर्थन करने का फैसला किया है। राजपक्षे ने अपनी सरकार के खिलाफ हुए अभूतपूर्व प्रदर्शन के बाद इस्तीफा दे दिया था।

श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के महासचिव सागर कारियावसम ने कहा कि प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को उनका समर्थन रहेगा। संसद जब तक राजपक्षे का उत्तराधिकारी नहीं चुन लेती, तब तक के लिए विक्रमसिंघे को शुक्रवार को अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर शपथ दिलाई गई।

पार्टी ने 73 वर्षीय विक्रमसिंघे का समर्थन करने का फैसला किया, जो कभी इसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी थे। एसएलपीपी से अलग हुए दुल्लास अलाहपेरुमा ने भी इस पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है। पूर्व सूचना मंत्री 20 जुलाई को होने वाले मतदान में उम्मीदवारी की घोषणा करने वाले पहले व्यक्ति बने।

अलाहपेरुमा ने कहा कि राजपक्षे के जाने से पैदा हुए शून्य को भरने के लिए वह राष्ट्रपति पद की दौड़ में एक गैर राजनीतिक उम्मीदवार के रूप में सभी दलों के समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं। अभूतपूर्व आर्थिक संकट से जूझ रहे देश में हजारों प्रदर्शनकारियों के राजपक्षे के आधिकारिक आवास में पहुंच जाने के बाद वह अपने पद से इस्तीफा देने को राजी हुए थे। वह हालांकि अपने पद से इस्तीफा दिए बगैर मालदीव भाग गए थे। मालदीव से गुरुवार को वह सिंगापुर चले गए, जहां से उन्होंने अपना इस्तीफा भेजा।

विक्रमसिंघे ने किया 'महामहिम' शब्द के इस्तेमाल पर रोक का फैसला : श्रीलंका के अंतरिम राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने शुक्रवार को राष्ट्रपति को संबोधित करने के लिए ‘महामहिम’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने और राष्ट्रपति के झंडे को खत्म करने का फैसला लिया। उन्होंने अभूतपूर्व आर्थिक संकट से जूझ रहे द्वीपीय देश में लोकतंत्र एवं संविधान की रक्षा करने की अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई।

विक्रमसिंघे श्रीलंका के प्रधानमंत्री भी हैं। श्रीलंकाई संसद द्वारा गोटबाया राजपक्षे का उत्तराधिकारी चुने जाने तक उन्हें अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त किया गया है। राजपक्षे को उनकी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के चलते देश को अभूतपूर्व आर्थिक संकट में धकेलने के आरोपों को लेकर बढ़ते विरोध-प्रदर्शनों के मद्देनजर राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद विक्रमसिंघे ने कहा, कुछ विशिष्ट लोगों को बचाने के बजाय देश की रक्षा करें। विक्रमसिंघे ने कहा कि बतौर अंतरिम राष्ट्रपति उन्होंने राष्ट्रपति को संबोधित करने के लिए ‘महामहिम’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फैसला किया है।

विक्रमसिंघे ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति के झंडे को खत्म किया जाएगा, क्योंकि देश को सिर्फ एक झंडे के इर्दगिर्द जुटना चाहिए और वह राष्ट्रीय ध्वज है। टेलीविजन पर प्रसारित संबोधन में उन्होंने कहा, मैं कभी किसी असंवैधानिक कृत्य के लिए मार्ग प्रशस्त नहीं करूंगा, न ही उसमें कोई सहायता करूंगा।

अंतरिम राष्ट्रपति ने आगे कहा कि कानून-व्यवस्था के चरमराने से देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। उन्होंने चेताया कि खाद्य वस्तुओं, बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित हो सकती है, ऐसे में लोगों को आगे की खतरनाक स्थिति को समझना चाहिए।

विक्रमसिंघे ने बताया कि देश में बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक विशेष समिति गठित की गई है, जिसमें प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस), पुलिस महानिरीक्षक और तीनों सेनाओं के कमांडर शामिल हैं।

उन्होंने नेताओं से अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को अलग रखने और देशहित के बारे में सोचने की अपील की। श्रीलंका में जारी विरोध-प्रदर्शनों पर टिप्पणी करते हुए विक्रमसिंघे ने कहा कि देश में कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए त्वरित कदम उठाए जाएंगे।

उन्होंने कहा, शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन स्वीकार्य हैं, लेकिन कुछ लोग तोड़फोड़ जैसे कृत्यों में शामिल हैं। ऐसे फासीवादी समूह भी हैं, जो देश में हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने हाल ही में सैनिकों से हथियार और गोला-बारूद छीन लिया था। 24 जवान घायल हुए हैं, जिनमें से दो की हालत गंभीर है।(एजेंसियां)
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