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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

वास्तुकला के नायाब 16 चमत्कारिक नमूने, जानिए

वास्तुकला के नायाब 16 चमत्कारिक नमूने, जानिए - Wondrous architectural temple
संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
 
प्राचीन काल में दुनियाभर में वास्तु शास्त्र के अनुसार ही धर्म स्थल, महल, कब्रें, स्मारक, स्तंभ आदि बनाए जाते थे। आज भी उनके चमत्कारिक वास्तु की चर्चा होती है। वर्तमान में उस तरह के स्मारक बनाने लगभग संभव नहीं है। यह इंजीनियरिंग के बेहतर नमूने हैं।
हमने दुनिया भर से कुछ ऐसे स्मारक या स्ट्रक्चर के बारे में जानकारी इकट्ठा की है, जो आज भी वास्तु का बेमिसाल उदाहरण है। उन्हें देखकर या उनके बारे में सुनकर बहुत ही आश्‍चर्य होता है। ऐसे ही 16 आश्चर्यजनक स्थलों के बारे में जानिए...
 
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मिस्र के पिरामिड : जब पिरामिड की बात आती है तो मिस्र या इजिप्ट के पिरामिडों की ज्यादा चर्चा होती है। दरअसल मिस्र के पिरामिड पुरानी खो गई सभ्‍यता के तीर्थ है जो अब मकबरें में बदल गए हैं।
 
 
मिस्र में 138 पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीजा में तीन। हालांकि जमीन में अभी भी इतने ही और पिरामिड दबे हुए हैं। गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के 7 अजूबों की सूची में शामिल है। यह पिरामिड 450 फुट ऊंचा है। लगभग 4,000 वर्षों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा है।
 
अमेरिका में पिरामिड : अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी। 250 ईस्वी से 900 ईस्वी के बीच माया सभ्यता अपने चरम पर थी। यूं तो इस इलाके में ईसा से 10,000 साल पहले से बसावट शुरू होने के प्रमाण मिले हैं और 1800 साल ईसा पूर्व से प्रशांत महासागर के तटीय इलाकों में गांव भी बसने शुरू हो चुके थे। 
 
लेकिन कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि ईसा से कोई 1,000 साल पहले माया सभ्यता के लोगों ने आनुष्ठानिक इमारतें बनाना शुरू कर दिया था और 600 साल ईसा पूर्व तक बहुत से परिसर बना लिए थे। सन् 250 से 900 के बीच विशाल स्तर पर भवन निर्माण कार्य हुआ, शहर बसे। उनकी सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं, जो उन्होंने धार्मिक केंद्रों में बनाईं लेकिन फिर सन् 900 के बाद माया सभ्यता के इन नगरों का ह्रास होने लगा और नगर खाली हो गए।
 
अंटार्कटिका में पिरामिड : रेडियो रूस की वेबसाइट के अनुसार अमेरिका और योरप के वैज्ञानिकों ने सन् 2013 में बर्फीले अंटार्कटिका में 3 पिरामिडों की खोज की है जिनमें से 1 पिरामिड तो समुद्र तट के पास ही है, लेकिन 2 पिरामिड तट से 16 किलोमीटर दूर समुद्र में डूबे हुए हैं। ये तीनों ही पिरामिड मानव द्वारा निर्मित हैं, क्योंकि हजारों वर्ष पहले अंटार्कटिका का यह क्षेत्र बर्फीला होने की जगह पेड़-पौधों और हरियाली से पटा हुआ था। यहां उस काल में मनुष्य रहता था। अंटार्कटिका की भूमि पर घने जंगल हुआ करते थे और तरह-तरह के जीव-जंतु भी रहते थे। आज अंटार्कटिका महाद्वीप का एक बहुत बड़ा हिस्सा बर्फ की मोटी पर्त से ढंका हुआ है।
 
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अंकोरवाट का हिन्दू मंदिर : कम्बोडिया के अंकोरवाट में एक विशालकाय हिन्दू मंदिर है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इसे पहले अंकोरयोम और उससे पहले यशोधपुर कहा जाता था। प्राचीन लेखों में कम्बोडिया को कम्बुज कहा गया है।
अंकोरवाट का निर्माण कम्बुज के राजा सूर्यवर्मा द्वितीय (1049-66 ई.) ने कराया था और यह मन्दिर विष्णु को समर्पित है। अंकोरवाट जयवर्मा द्वितीय के शासनकाल (1181-1205 ई.) में कम्बोडिया की राजधानी था। यह अपने समय में संसार के महान नगरों में गिना जाता था।
 
यह हिन्दुओं का सबसे विशाल मंदिर है, जिसका वास्तु देखते ही बनता है। मंदिर के मध्यवर्ती शिखर की ऊंचाई भूमितल से 213 फुट है। इसके बाद जगन्नाथ मंदिर को सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है।
 
एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित इस मंदिर के तीन खण्ड हैं। प्रत्येक खण्ड से ऊपर के खण्ड तक पहुँचने के लिए सीढ़ियां हैं। प्रत्येक खण्ड में आठ गुम्बज हैं, जिनमें से प्रत्येक 180 फुट ऊंचा है। मुख्य मन्दिर तीसरे खण्ड की चौड़ी छत पर है। उसका शिखर 213 फुट ऊंचा है। दुनिया का सबसे विशालकाय मंदिर यही है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है।
 
मन्दिर के चारों ओर पत्थर की दीवार का घेरा है जो पूर्व से पश्चिम की ओर दो-तिहाई मील और उत्तर से दक्षिण की ओर आधे मील लम्बा है। इस दीवार के बाद 700 फुट चौड़ी खाई है, जिस पर एक स्थान पर 36 फुट चौड़ा पुल है। इस पुल से पक्की सड़क मंदिर के पहले खण्ड द्वार तक चली गई है।
 
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सेंट पीटर्स बेसिलिका चर्च (इटली, वेटिकन सिटी) : इटली की वेटिकन सिटी में सेंट पीटर्स बेसिलिका का चर्च सबसे बड़ा चर्च माना जाता है। कहते हैं कि इसकी भीतरी वास्तु रचना अजंता की गुफाओं की तर्ज पर की गई थी।
इस चर्च का इतिहास सैंकड़ों साल पुराना है। कैथोलिक मान्यता के अनुसार यह सेंट पीटर का अंत्येष्टि स्थल है। सेंट पीटर रोम के पहले पोप और बिशप थे। सेंट पीटर की कब्र यहीं पर स्थित है।
 
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द टेंपल ऑफ हेवन (स्वर्ग का मंदिर, बीजिंग- चीन) : चीन का यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इसे ताओ धर्म का प्राचीन मंदिर कहते हैं। इस मंदिर को देखकर लोगों को यह अहसास होता है कि वास्तव में हेवन यानी स्वर्ग ऐसा ही होगा।

यहां पर ताओ धर्म परंपराओं के अनुसार पूजन और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। द टेंपल ऑफ हेवन का निर्माण 13वीं शताब्दी में किया गया था। यह ध्यान और धार्मिक अभ्यास का श्रेष्ठ स्थान है। ताओ चीन के एक आध्यात्मिक गुरु थे। ताओ की बहुत सारी शिक्षाएं बुद्ध से प्रेरित हैं।
 
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श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर (श्रीरंगम, भारत) : त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु को समर्पित यह भव्य मंदिर भारत के तमिलनाडु प्रांत के तिरुचिरापल्ली जिले में श्रीरंगम में स्थित है इसीलिए इसे श्रीरंगनाथम स्वामी मंदिर भी कहा जाता है।
यह मंदिर अपनी बहुरंगीय इमारत और द्रविड़ शैली की वस्तुकला के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह बाहर काफी सुंदर दिखाई देता है। इस मंदिर का इतिहास भी सैकड़ों साल पुराना है। रंगनाथस्वामी का मंदिर दक्षिण भारत के श्रेष्ठ मंदिरों में से एक है।
 
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प्रंबनन मंदिर (मध्य जावा इंडोनेशिया) : इंडोनेशिया के सेंट्रल जावा में स्थित यह एक हिन्दू मंदिर है। प्राचीनकाल में इंडोनेशिया का राजधर्म हिन्दू और उसके बाद बौद्ध हुुआ करता था। लेकिन इस्लाम के उदय के बाद अब यह मुस्लिम राष्ट्र है।

ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी को समर्पित इस मंदिर को मान्यता अनुसार 9वीं शताब्दी में बनाया गया था। मंदिर की दीवारों पर धार्मिक कहानियां और शानदार नक्काशी उकेरी गई हैं।
 
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सेंट बेसिल्स कैथेड्रल (मास्को, रूस) : यह चर्च रूस के मास्को शहर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस कैथेड्रल का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था।

नायाब वास्तुकला से निर्मित इस चर्च का मुख्य आकर्षण यहां के रंग-बिरंगे और खूबसूत टॉवर हैं। पुराने समय में रेड चर्च के रूप में प्रसिद्ध इस इमारत को अब म्यूजियम के रूप में जाना जाता है, जो विश्वभर में सेंट बेसिल्स कैथेड्रल नाम से विख्‍यात है। 
 
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वाट रोंग खुन (च्यांग राय, थाईलैंड) : यह एक बौद्ध मंदिर है, जो थाईलैंड के च्यांग राय शहर में स्थित है। यहां का आर्किटेक्चर और बौद्ध धर्म की मान्यताओं से प्रेरित है। भगवान बुद्ध को समर्पित इस श्वेत मंदिर को देखना अद्भुत है।

इस मंदिर का अद्भुत और सबसे भिन्न स्वरूप देखते ही बनता है जिसके कारण यह विश्व प्रसिद्ध है। बौद्धकाल में अद्भुत वास्तु रचना की गई थी जिसके आधार पर ही दुनिया भर में अन्य धार्मिक स्थलों का निर्माण किया गया।
 
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स्वर्ण मंदिर, अमृतसर (हरमंदिर साहिब, पंजाब, भारत) : भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर शहर में स्वर्ण मंदिर स्थित है। यह सिख गुरुद्वारा है। इसे हरमंदिर साहिब या श्रीदराबर साहिब भी कहा जाता है। इस मंदिर पर स्वर्ण की परत के कारण इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है। इसकी वास्तु रचना भी अद्भुत है जिसके कारण यह दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले लोग मंदिर के सामने सिर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सीढ़ियों से मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं। सीढ़ियों के साथ साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। स्वर्ण मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है।
 
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स्वेडगन पगोडा (शिवालय, यांगून, म्यांमार) : यह एक बौद्ध मंदिर है जो स्वेडगन पगोडा नाम से विख्‍यात है। म्यांमार के यंगुन में स्थित यह अपने स्वर्ण रंग के कारण बहुत ही सुंदर दिखाई देता है। यह मंदिर करीब 98 मीटर ऊंचा है और काफी भव्य बना हुआ है।
 
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10. गवड्वापलिन टेंपल (gawdawpalin बागान म्यांमार) : यह एक बौद्ध मंदिर है जो गवड्वापलिन के नाम से मशहूर है। यह म्यांमार के बागान में स्थित है और ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण 12वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था।

यह क्षे‍त्रफल की दृष्टि से काफी विस्तृत मंदिर है। सन् 1975 में यहां भूकंप आया था। जिस वजह से यह मंदिर क्षत्रिग्रस्त हो गया था और कुछ वर्षों में पुन: इसका जिर्णोद्धार किया गया।
 
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2. कुतुब मीनार : कुतुब मीनार को पहले विष्णु स्तंभ कहा जाता था। इससे पहले इसे सूर्य स्तंभ कहा जाता था। इसके केंद्र में ध्रुव स्तंभ था जिसे आज कुतुब मीनार कहा जाता है। इसके आसपास 27 नक्षत्र के आधार पर 27 मंडल थे। इसे वराहमिहिर की देखरेख में बनाया गया था। चंद्रगुप्त द्वितिय के आदेश से यह बना था।
ज्योतिष स्तंभों के अलावा भारत में कीर्ति स्तम्भ बनाने की परंपरा भी रही है। खासकर जैन धर्म में इस तरह के स्तंभ बनाए जाते रहे हैं। आज भी देश में ऐसे कई स्तंभ है, लेकिन तथाकथित कुतुब मीनार से बड़े नहीं। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में ऐसा ही एक स्तंभ स्थित है।
 
ऐसा भी कहते हैं कि समुद्रगुप्त ने दिल्ली में एक वेधशाला बनवाई थी, यह उसका सूर्य स्तंभ है। कालान्तर में अनंगपाल तोमर और पृथ्वीराज चौहान के शासन के समय में उसके आसपास कई मंदिर और भवन बने, जिन्हें मुस्लिम हमलावरों ने दिल्ली में घुसते ही तोड़ दिया था। कुतुबुद्दीन ने वहां 'कुबत−उल−इस्लाम' नाम की मस्जिद का निर्माण कराया और इल्तुतमिश ने उस सूर्य स्तंभ में तोड़-फोड़कर उसे मीनार का रूप दे दिया था।
 
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1. ताज महल : आगरा का ताजमहल किसने बनवाया यह एक विवाद का विषय हो सकता है, लेकिन वह है नायाब वास्तु का चमत्कार। भारतीय प्रदेश उत्तरप्रदेश के आगरा शहर में स्थित यह महल शाहजहां की पत्नी मुमताज के मकबरें के नाम से विख्यात है, लेकिन कुछ इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं।
उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे मकबरें का लुक दिया था। बेशक ताजमहल एक मस्जिद या दरगाह नहीं है। माना जाता है कि यह राजा मानसिंह का 'तेजो महालय' था। हालांकि यह शोध का विषय है।
 
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द्वारिका नगर :  मथुरा से निकलकर भगवान कृष्ण ने द्वारिका क्षेत्र में ही पहले से स्थापित खंडहर हो चुके नगर क्षेत्र में एक नए नगर की स्थापना की थी। यह नगर विश्वकर्मा और मयदानव ने मिलकर बनाया था। इस नगर की वास्तु रचना के बारे में पढ़कर आश्चर्य ही होता है। चारों और से समुद्र की खाई से घिरे इस नगर में प्रवेश लगभग मुश्किल ही माना जाता था। हालांकि इसके चारों ओर कई दरवाजे थे जिसके कारण इसे द्वारिका कहा जाता था। अर्थात द्वारों का नगर।
क्या प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई द्वारिका? क्या किसी आसमानी ताकत ने नष्ट कर दिया द्वारिका को या किसी समुद्री शक्ति ने उजाड़ दिया द्वारिका को। आखिर क्या हुआ कि नष्ट हो गई द्वारिका और फिर बाद में वह समुद्र में डूब गई?
 
गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।
 
द्वारिका के खोजकर्ताओं अनुसार द्वारिका का महल इतना भव्य था कि जिसकी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह भवन 40 हजार वर्गमीटर के दायरे में फैला था। इसके स्तंभ और गुंबज आज भी समुद्र में पड़े हैं, जिन्हें देखकर इसकी भव्यता का इसके वास्तु का अंदाजा लगाया जा सकता है।
 
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बहाई धर्म : बहाई पंथ उन्नीसवीं सदी के ईरान में सन 1844 में स्थापित एक नया धर्म है जो एकेश्वरवाद और विश्वभर के विभिन्न धर्मों और पंथों की एकमात्र आधारशिला पर जोर देता है। इसकी स्थापना बहाउल्लाह ने की थी और इसके मतों के मुताबिक दुनिया के सभी मानव धर्मों का एक ही मूल है।
भारत का बहाई धर्म से उसके उद्भव काल से संपर्क रहा। बहाई धर्म को भारत में ही फलने और बढ़ने का मौका मिला। जिन 18 पवित्र आत्माओं ने 'महात्मा बाब', जोकि 'भगवान बहाउल्लाह' के अग्रदूत थे, को पहचाना और स्वीकार किया था, उन में से एक व्यक्ति भारत से भी थे। आज लगभग 20 लाख बहाई, भारत देश की महान विविधता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
 
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इंद्रप्रस्थ महल : दिल्ली को उस काल में इंद्रप्रस्थ का जाता था और मेरठ को हस्तिनापुर। दिल्ली में पुराना किला इस बात का सबूत है। खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर पुरातत्वविदों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि पांडवों कि राजधानी इसी स्थल पर थी। दिल्ली कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है।
 
पुराना किला दिल्ली में यमुदा नदी के पास स्थित है, जिसे पांडवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुनरोद्धार होता रहा। महाभारत के अनुसार यह पांडवों की राजधानी थी। दूसरी ओर कुरु देश की राजधानी गंगा के किनारे ‍हस्तिनापुर में स्थित थी।
 
महाभातर अनुसार इंद्रप्रस्थ में एक ऐसा महली था जिसके भीतर जाकर हर कोई भ्रमित हो जाता था। जहां पानी नजर आता वहां फर्श होता था और जहां फर्श नजर आता वहां पानी होता था। इसी तरह उसमें वास्तु के कई और भी चमत्कारिक निर्माण किए गए थे।
 
दिल्ली का लालकोट क्षेत्र राजा पृथ्वीराज चौहान की 12वीं सदी के अंतिम दौर में राजधानी थी। लालकोट के कारण ही इसे लाल हवेली या लालकोट का किला कहा जाता था। बाद में लालकोट का नाम बदलकर शाहजहानाबाद कर दिया गया।
 
लाल कोट अर्थात लाल रंग का किला, जो कि वर्तमान दिल्ली क्षेत्र का प्रथम निर्मित नगर था। इसकी स्थापना तोमर शासक राजा अनंगपाल ने 1060 में की थी। साक्ष्य बताते हैं कि तोमर वंश ने दक्षिण दिल्ली क्षेत्र में लगभग सूरज कुण्ड के पास शासन किया, जो 700 ईस्वी से आरम्भ हुआ था। फिर चौहान राजा, पृथ्वी राज चौहान ने 12वीं सदी में शासन ले लिया और उस नगर एवं किले का नाम किला राय पिथौरा रखा था। राय पिथौरा के अवशेष अभी भी दिल्ली के साकेत, महरौली, किशनगढ़ और वसंत कुंज क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं।

सभी चित्र यू-ट्यूब से साभार
इसके अलावा अजंता एवं एलोरा के मंदिर, 
माचू पीचू,  हंपी और डम्पी, कैलाश मंदिर, महाबलीपुरम, कोणार्क,  राजगीर, सारनाथ, सांची के स्तूप आदि ऐसा हजारों मंदिर, गुफा और मीनारें हैं तो वस्तु के अद्भुत नमूने हैं।