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Last Updated : शनिवार, 23 अप्रैल 2016 (15:24 IST)

जंगली जानवरों के बीच पले बच्चे, पढ़ें रोचक जानकारी

जंगली जानवरों के बीच पले बच्चे, पढ़ें रोचक जानकारी - mowgli jungle book
भारत में ही पैदा हुए ब्रिटिश कवि, लेखक और नोबेल पुरस्कार विजेता रूडयार्ड किपलिंग की वर्ष 1894 में एक कहानी संग्रह 'द जंगल बुक' के नाम से प्रकाशित हुआ था। इस किताब पर समय-समय पर बहुत सारी फिल्में जिनका नाम भी 'द जंगल बुक' भी रखा गया था। ऐसी पहली फिल्म 1994 में पहली बार आई थी और तब से लेकर अब तक 19 एनीमेटेड फिल्में बनाई जा चुकी हैं। भारत में टीवी पर 'जंगल बुक' नाम से एनीमेटेड फिल्म बनाई गई। हाल ही वाल्ट डिज्नी ने 19वीं एनीमेटेड फिल्म बनाकर दुनिया भर में प्रदर्शित की है।  
इस फिल्म के प्रदर्शन से पहले भारत में बनी टीवी एनीमे‍टेड फिल्म जंगल बुक खासी चर्चित और लोकप्रिय रही जिसमें 'मोगली' नाम के एक ऐसे बच्चे की कहानी है जो कि भेड़ियों के द्वारा पाला जाता है और बाद में इसे सारी दुनिया के सामने लाया जाता है।
 
किपलिंग ने जिस भेड़िया बच्चे मोगली की कहानी कही है, वह एक अरसा पहले के मध्यप्रदेश के कस्बे सिवनी की है, जहां के जंगलों में मोगली मिला था। तब से लेकर भारत में ऐसे कई बच्चों की कहानियां सामने आईं जो कि जंगलों में पले-बढ़े और समझा जाता है कि उन्हें जानवरों ने पाला या फिर वे जानवरों के सम्पर्क में रहते हुए दुनिया के सामने आए।     
 
भारत में ऐसी घटनाओं को 'जंगली बच्चे' (फेरल चिल्ड्रन) नामक अपने प्रोजेक्ट के लिए फोटोग्राफर जूलिया फुलरटन-बैटन ने ऐसे बच्चों की तस्वीरें ली थीं और उन्होंने इनके बारे में भी जानकारी दी थी। इन कहानियों या घटनाओं को लेकर किसी प्रकार की प्रामाणिकता का दावा नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह कहना गलत न होगा कि इनका उल्लेख समय-समय पर बहुत सारे प्रसिद्ध समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और देशी-विदेशी मीडिया में किया गया है।  
 
ऐसा कहा जाता है कि ये जंगली बच्चे जानवरों के बीच न केवल पले-बढ़े और उनकी आदतें भी सीख गए थे, बल्कि उनके बीच सालों तक सुरक्षित भी रहे। इनके अलावा भी दुनिया भर में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख है, जिनमें बच्चों ने 'जंगल बुक' वाले मोगली की तरह ही जानवरों के बीच बचपन गुजारा।
 
वर्ष 2014 में निर्देशक वक रज्यूमोविक की पहली फिल्म 'नो वन्स चाइल्ड'  ('No One’s Child') आई थी जिसके एक सच्ची घटना पर आधारित होने का दावा किया है। वर्ष  1988 में शिकारियों के एक गुट ने इस बच्चे को बोस्निया के खतरनाक जंगलों में भेड़ियों के बीच पाया था। इस फिल्म को दुनिया भर में सराहा गया। इस फिल्म को 'द अर्बन जंगलबुक'  (The Urban Jungle Book) कहकर भी सम्मानित किया गया था।
 
इसी तरह वर्ष 2014 में आई मैरियाना चैपमैन (Marina Chapman) की किताब 'The Girl With No Name' में लेखिका ने अपने साथ घटित हुई उस घटना का वर्णन किया है। उनका कहना है कि जब वह चार साल की थीं तब अपहरणकर्ताओं ने उन्हें गांव से  अगवा कर जंगल में छोड़ दिया था। जंगल में उन्हें बंदरों ने पाला और उनका ध्यान रखा।
 
विदित हो कि मैरियाना चैपमैन और फोटोग्राफर जूलिया फुलर्टन-बैटन संबंधी जानकारी अमेरिकी वेब पोर्टल हफिंगटन पोस्ट पर भी दी गई थी।
 
इसी विषयवस्तु को ध्यान में रखते हुए फोटोग्राफर जूलिया ने इस तरह की दूसरी कहानियों को भी दुनिया भर से जुटाने का फैसला किया और उनके इस प्रोजेक्ट का नाम भी 'फेरल चिल्ड्रन' था। अपने इस प्रोजेक्ट के तहत दुनिया भर की उन कहानियों को फोटोग्राफी के माध्यम से सजीव करने की कोशिश की है, जो सचमुच घटित हो चुकी हैं। इनमें से कुछ नीचे दी जा रही हैं।
 
अगले पेज पर पढ़ें लेपर्ड बॉय और भेड़ियों के बीच पलीं दो बहनों की कहानी...
 

द लेपर्ड बॉय (1912) : हफिंगटन पोस्ट में प्रकाशित इस कहानी में जूलिया ने एक 'तेंदुआ बच्चे' के बारे में जानकारी दी थी। उनका कहना था कि उत्तराखंड के ढूंगी में दो साल के एक बच्चे को 1912 में एक मादा तेंदुआ उस समय उठा ले गई थी, जब उसकी मां खेतों में काम कर रही थी। उस तेंदुए ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि ग्रामीणों ने उसके बच्चों को मार दिया था। तीन वर्ष के बाद जब वह बच्चा पांच वर्ष का हो गया, तब शिकारियों ने उस मादा तेंदुए का शिकार किया और वह बच्चा मिल गया।  
 
लेकिन, लोगों के बीच में वापस आने के बाद भी वह बच्चा अपने चारों हाथ-पैरों से चलता था और उसकी स्पीड और सूंघने की शक्ति बेजोड़ हो चुकी थी। ब्रिटिश पक्षी विज्ञानी और पुलिस अधिकारी EC Stuart Baker ने इस Leopard Boy से मुलाकात के बाद Bombay Natural History Society (BNHS) की पत्रिका में एक रिपोर्ट लिखी थी। लेकिन इस कहानी से जुड़े बहुत से सवालों के संतोषजनक उत्तर नहीं मिल सके। 
 
कमला और अमला :  कमला और अमला नामक दो बहनों की जानकारी भी जूलिया ने एकत्र की थी। इस कहानी के अनुसार आठ साल की कमला और डेढ़ साल की अमला को भेड़ियों की मांद में 1920 में पाया गया था। इस बात का दावा करने वाले Reverend Joseph Amrito Lal Singh एक पेड़ के पीछे छुपे रहे और जब भेड़िए अपनी मांद से निकल गए, तब उन्होंने वहां से दोनों बच्चों को निकाला। वे उन्हें अपने अनाथालय ले आए।  
 
बंगाल के मिदनापुर में पाई गईं वे दोनों बच्चियां भयंकर दिखाई देती थीं। वे गुर्राती और लोगों से दूर भागती थीं। अपने कपड़े फाड़ देने के अलावा वे केवल कच्चा मांस ही खाती थीं। उनकी देखने और सूंघने की क्षमता अभूतपूर्व थी। अमला जंगल से आने के बाद अगले साल ही मर गई थी, लेकिन बाद में कमला ने सीधे चलना और थोड़ा-बहुत बोलना सीख लिया था, पर किडनी फेल होने के बाद सत्रह साल की उम्र में चल बसी। इन दोनों बच्चियों की कहानी का उल्लेख भानु कपिल की किताब 'Humanimal' में भी मिलता है।
 
लेकिन कहा जाता है कि फ्रांसीसी सर्जन Serge Arole ने इस स्टोरी पर रिसर्च की और कई बातें गलत भी पाईं। अब तक किसी आखिरी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सका है, लेकिन जूलिया ने इन बच्चों की कई तस्वीरें ली थीं।
 
मादा भेड़िया का दूध पीने वाले दो बच्चों की कहानी... अगले पेज पर...
 
 

भेड़िया बालक : शामदेव की कहानी है, वर्ष 1972 की जिसकी तस्वीरें भी जूलिया ने ही खींची थीं। इस बच्चे के बारे में कहा गया है कि उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जिले के नारायणपुर गांव में रहने वाले एक किसान नरसिंह बहादुर सिंह जंगल के बीच से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने चार-पांच साल के एक बच्चे को भेड़िए के बच्चों के साथ भागते हुए देखा।  
 
नरसिंह उस बच्चे को किसी तरह पकड़कर घर ले आए, पर उस बच्चे ने वहां से छूटने के लिए लोगों को काटना, गुर्राना और नोंचना शुरू कर दिया। नरसिंह ने काफी समय तक कच्चा मांस खिलाकर उस बच्चे को अपने पास रखा, फिर मदर टेरेसा के चैरिटी मिशनरी 'प्रेम निवास' भेज दिया। नरसिंह उसे शामदेव बुलाते थे लेकिन मिशनरी में उसे भालू नाम से बुलाया जाने लगा, जबकि कुछ लोगों के द्वारा उसे 'रामू' नाम से भी बुलाने का उल्लेख मिलता है। 
 
रोमुलस और रीमस : ये बच्चे भारत में पले-बढ़े लेकिन विदेशों में भी ऐसी बहुत सी कहानियां हैं जो कि ऐसी ही मिलती जुलती हैं। कहा जाता है कि रोम में दो जुड़वां भाइयों, रोमुलस और रीमस को पाया गया था। बच्चे को अनाथ छोड़ दिया गया था और दोनों को मादा भेड़ियों ने अपना दूध पिलाया था। बाद में उन्हें एक घुमंतू चरवाहे ने देखा और उनकी देखरेख की। कहा जाता है कि इन्होंने पैलाटिन हिल पर एक बड़े शहर की नींव डाली। यह वही जगह थी जहां भेड़ियों ने उनकी देखरेख की थी। इसे काल्पनिक कहानी ही माना जाता है, लेकिन ऐसी बहुत सी कहानियां हैं जिनमें बच्चों के जंगलों में पाले पोसे जाने की कहानी जुड़ी हुई है।
 
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यूक्रेन की डॉग गर्ल : अपने माता-पिता की उपेक्षा की शिकार ओक्सना मालाया को तीन वर्ष से 8 वर्ष की आयु तक एक कुत्ताघर में रहना पड़ा था। इस समय में केवल कुत्ते ही उसके साथी और करीबी प्राणी थे। वर्ष 1991 में जब उसे पाया गया तो वह बोल नहीं पाती थी और केवल भौंक सकती थी। वह दोनों हाथों और पैरों से घूमती थी। आज वह बीस वर्ष से अधिक उम्र की है, लेकिन मालाया को बोलना सिखाने की कोशिश की गई लेकिन ज्ञान संबंधी कमियों के चलते बोल नहीं सकती है। वह एक मानसिक संस्थान में रहती है और इसके पास एक फार्म में गायें रहती हैं जिनकी वह देखभाल करके खुश रहती है।  
 
कंबोडिया की जंगल गर्ल :  कंबोडिया में जंगल के किनारे पर भैंसें चराने वाली आठ वर्ष की रोशम पैनजीइंग जंगल में खो गई थी और रहस्यमय ढंग से गायब रहने के 18 वर्ष बाद 2007 में उसे एक किसान ने देखा। ग्रामीण ने पूरी तरह से निर्वस्त्र महिला को अपने खेत पर चावल चुराते देखा था। बाद में, उसकी पहचान रोशम पेनजीइंग के तौर पर हुई जिसकी पीठ पर घावों को देखा जा सकता था। वह तीस वर्ष की महिला हो गई थी लेकिन उसने खुद को किसी तरह से घने जंगलों में जीवित रखा। वह स्थानीय संस्कृति में ढल नहीं सकी और उसे स्थानीय भाषा भी नहीं आई तो वह मई 2010 को फिर से जंगल में भाग गई। उसके बारे में तरह-तरह की बातें कही जाती हैं।
 
उगांडा का मंकी बॉय :  अपने पिता द्वारा मां की हत्या किए जाने को देखकर भयभीत 4 वर्षीय जॉन सेबुन्या जंगल में भाग गया था। कहा जाता है कि उसे जंगल में छोटे आकार वाले दक्षिण अफ्रीकी बंदरों ने पाला था। जब 1991 में उसकी खोज की गई तब भी वह बंदरों के साथ ही था। जब उसके गांव वालों ने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उसने बंदरों के साथ मिलकर कड़ा प्रतिरोध किया, लेकिन अब पकड़े जाने के बाद जॉन को बोलना और गाना सिखाया गया है। अब वह अफ्रीकी बच्चों की संगीत मंडली के साथ यात्राओं पर भी जाता है।
शिकारी भेड़ियों के साथ रहने वाली लड़की... पढ़ें अगले पेज पर....

विक्टर ऑफ एविरॉन : अब तक जितने भी फेरल (जंगली) बच्चे पकड़े गए हैं, उनमें विक्टर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ है। एक फ्रेंच फिल्म 'ल इन्फेंट सॉवेज' के जरिए उससे दुनिया को परिचित कराया गया। उसकी पैदाइश को लेकर भी रहस्य है और आमतौर पर यह माना जाता है कि उसने अपना सारा बचपन नंगे रहकर जंगलों में अकेले गुजारा है। उसे 1797 में पहली बार देखा गया था। कुछेक बार और देखे जाने के बाद वह खुद ही वर्ष 1800 में दक्षिणी फ्रांस के सेंट सरनिन सर रांस के एक कम्यून में आ गया।
 
विक्टर दार्शनिकों, वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बन गया। यह लोग भाषा की उत्पत्ति और मानव व्यवहार को लेकर जानना चाहते थे, लेकिन उसके ज्ञान संबंधी कमियों के चलते इन मामलों में कोई खास प्रगति नहीं हुई।        
 
मदीना : मदीना की दुखद कहानी भी ऑक्सना मालाया जैसी है। उसे तीन वर्ष की उम्र में घर वालों ने छोड़ दिया था और पिछले वर्ष ही उसके बारे में पता लगा। वह कुत्तों के साथ रही। जब वह मिली तो उसे केवल दो शब्द यस या नो आते थे लेकिन कुछ बोलने की बजाय गुर्राती थी। जब उसे खोजा गया तो इसके तुरंत बाद डॉक्टरों ने उसकी जांच की और पाया कि वह शारीरिक और मानसिक तौर पर पूरी तरह स्वस्थ है, लेकिन उसकी शारीरिक मानसिक वृद्धि प्रभावित हुई। पर वह अभी भी इतनी युवा है कि उसके देखभाल करने वालों का कहना है कि वह अपेक्षाकृत सामान्य जीवन जी सकती है।  
लड़का जो पक्षियों की तरह चहचहाता था... पढ़ें अगले पेज पर....

डेविल'स रिवर की लोबो वूल्फ गर्ल : वर्ष 1845 में एक रहस्यमय लड़की को मेक्सिको के सान फिलिप के पास बकरियों के एक झुंड पर हमला करते भेड़ियों के साथ देखा गया था। उसकी कहानी का फिर एक बार सत्यापन हुआ जबकि एक वर्ष बाद फिर से देखी गई। उस समय वह हाल ही में मारी गई बकरी का कच्चा मांस खा रही थी। कुछ दिनों बाद सतर्क गांववालों ने लड़की की तलाशी का अभियान चलाया और बाद में उसे पकड़ लिया। वह रात भर के दौरान लगातार चिल्लाती रहती जिसके चलते गांव में उसे छुड़ाने के लिए भेडि़यों के समूह आ जाया करते थे। एक दिन वह बाड़े से निकल भागी और फिर उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
 
इस लड़की को 1852 में फिर देखा गया जब लोगों ने उसे कथित तौर पर नदी के मुहाने की रेत पर भेड़ियों के दो बच्चों को दूध पिलाते देखा। जैसे ही उसे इस बात का अहसास हुआ उसने भेड़ियों के दोनों बच्चों को समेटा और जंगल में भाग गई। इसके बाद उसके बारे में कोई बात नहीं सुनी गई।
 
रूसी बर्ड बॉय : चिड़ियों के घोंसलों से घिरे एक कमरे में बंद एक रूसी लड़के को उसकी दुष्टा मां ने एक पालतू पशु की भांति पाला था। जब उसका पता चला तो वह अन्य पक्षियों की तरह से चहचहा सकता था। हालांकि उसे शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचाया गया था लेकिन वह लोगों की भाषा में बात नहीं पर पाता थे। उसको एक मनोवैज्ञानिक केन्द्र में भेज दिया गया है, जहां पर उसके पुनर्वास के प्रयास किए जा रहे हैं।
 
जंगली लड़का पीटर : वर्ष 1724 में जर्मनी के शहर हैमलिन के पास जंगलों में एक नंगे, हाथों और पैरों से चलने वाले घने लंबे बाल लड़के को देखा गया था। अंतत: उसे पकड़ लिया गया लेकिन वह जंगली जानवरों जैसा व्यवहार करने लगा था। वह पक्षियों और सब्जियों को कच्चा खाता था और उसमें बोलने की क्षमता नहीं थी। उसे इंग्लैंड भेज दिया गया जहां उसे पीटर द वाइल्ड नाम दिया गया। हालांकि वह कभी भी बातचीत करना नहीं सीख सका लेकिन समझा जाता है कि उसे संगीत पसंद था। उससे शारीरिक श्रम वाले काम कराया गया था। काफी लम्बी आयु में उसका निधन हो गया। वर्ष 1785 में एक चर्च के अहाते में जहां उसे दफनाया गया था, वहां उसकी समाधि पर एक पत्‍थर लगाया गया है।