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Written By WD

बालकवि अंशुमन, जिसने आशा की मशाल जलाई

जिजीविषा और संकल्प का दूसरा नाम था अंशुमन

Anshuman Dubey | बालकवि अंशुमन, जिसने आशा की मशाल जलाई
अंशुमन दुबे, यह नाम है उस बाल कवि का जिसकी प्रेरक कविताओं ने कई निराश जिंदगी में रोशनी जगमगाई है। आज अंशुमन इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसकी लेखनी से निकली आशावाद की सुंदर कविताएं हजारों बच्चों के लिए प्रेरणा बन रही है। एक असाध्य बीमारी से जूझते हुए अंशुमन ने चाहे लंबी जिंदगी न जी हो लेकिन बड़ी उम्र जी है।

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वह काम जो प्रतिभा के धनी कहे जाने वाले अपनी पूरी जिंदगी जी कर भी नहीं कर पाते हैं वह मात्र 16 वर्ष इस दुनिया में रहकर अंशुमन ने कर दिखाया। उसके संघर्ष की राह कठिन थी पर उसके होंठों पर मुस्कान थिरकती रही। उसकी जिंदगी में दर्द का असह्य सैलाब था लेकिन उसकी जीवटता की चट्टान से टकरा कर वह भी लौटता रहा। ना जाने किस अव्यक्त छटपटाहट ने, ना जाने उम्र के किस नन्हे दौर में अंशुमन ने कलम थाम ली और फिर लेखनी से झरी आशा की सुनहरी किरणों से दिपदिपाती सुंदर रचनाएं।

ऐसी रचनाएं जो अंधेरों से रोशन राहों पर लाती है, ऐसी कविताएं जो निराशा के बियाबान जंगल से उम्मीद के फूलों से मुस्कुराती रंगबिरंगी बगिया में लेकर आती है।

क्या हुआ था अंशुमन को

अंशुमन को क्रॉनिक इन्फ्लेमेटरी डी माइलिग्नेटेड पॉलीन्यूरोपैथी जैसी भयावह बीमारी ने असमय घेर लिया। यह बीमारी असाध्य होती है। मांसपेशियां अशक्त हो जाती है। चलना-फिरना यहां तक कि हाथ-पैर हिलाना भी बंद हो जाता है। बस बिस्तर पर लेटे रहना ही नियति हो जाती है। यही अंशुमन के साथ हुआ। ऐसी विकट स्थिति में भी उसने अपनी अंतरशक्ति और ऊर्जा को बनाए रखा।

अपनी अल्पायु में ही अंशुमन लिख गया ऐसी सकारात्मक रचनाएं जो आज भी स्कूलों में नन्हे बच्चों के लिए प्रेरणा बन रही है। अंशुमन की कविताओं का संग्रह हर वर्ष अलग-अलग विद्यालयों के प्राचार्यों द्वारा विशेष मांग पर प्रकाशित होता है। ऐसी जीवटता वाली रचनाएं जो तूफानों के बीच भी अडिग रहने का संदेश देती है।


अगले पेज पर पढ़ें क्या कहते हैं अंशुमन के पिता जी

* पिता की नजर में अंशुमन
-आशुतोष दुबे

सच ही कहा है कि मजबूत आत्मबल और हौसले के दम पर इंसान हर कठिन वक्त व चुनौती का सामना कर उस पर विजय हासिल कर सकता है। यही प्रबल आत्मविश्वास और जज्बा मैंने अपने प्यारे बेटे चि. अंशुमन में पाया। दृढ़ इच्‍छाशक्ति की बदौलत ही अंशु ने अपनी शारीरिक कमी को अपने मन पर कभी हावी नहीं होने दिया। हालांकि उसने 16 बसंत ही देखे हैं, मगर इतनी कम उम्र में ही उसकी योग्यता, मेधा और प्रतिभा को देखकर हम ही नहीं, अंशु के संपर्क में आने वाला हर शख्स चकित रह जाता।

यह ईश्वर की ही देन कहूंगा कि जिसने अंशुमन को इस छोटी सी उम्र में इतनी तीक्ष्ण बुद्धि देकर उपकृत किया। पूछे गए हर प्रश्न का सारगर्भित उत्तर देकर वह हर किसी को प्रभावित करने की क्षमता रखता। किसी भी काम को जिद के साथ पूरा करने की उसमें विशेषता थी। आमतौर पर छोटे बच्चे स्कूल जाने से कतराते हैं, पर अंशु को पढ़ने-लिखने का इतना शौक था कि उसने स्कूल जाने के लिए कभी कोई बहाना नहीं बनाया।


वह खुशी-खुशी स्कूल जाता। घर लौटने पर बिना खाए-पिए और स्कूल यूनिफॉर्म उतारे बगैर सबसे पहले होमवर्क पूरा करना उसकी आदत बन चुकी थी। बुद्धि और स्मरण शक्ति इतनी तीक्ष्ण कि एक बार जो पढ़ लिया, उसे दोबारा कॉपी या पुस्तक में देखने की उसे जरूरत नहीं पड़ती। केजी-1 से 9वीं कक्षा तक का उसका शैक्षणिक सफर चमकदार रहा है।

शारीरिक कमजोरी के बावजूद अंशु ने हर परीक्षा में प्रथम या दूसरे स्थान पर ही स्वयं को खड़ा किया।

अंशुमन का मनोबल ऊंचा, इच्‍छाशक्ति प्रबल और इरादे मजबूत थे और कभी न डिगने वाला हौसला तो था ही। इसीलिए बीमारी और प्रकृति से हार न मानने का उसमें अनूठा जज्बा था। नई-नई ऊंचाइयों को छूने की उसमें प्रबल आकांक्षा थी।

बच्चे की बीमारी को देखकर कई बार उसकी मां हताश और निराश होकर दुखी होने लगती। वह उनका हौसला पस्त नहीं होने देता। वह उन्हें ढांढस बंधाता, हिम्मत दिलाता और विश्वासपूर्वक कहता है- 'मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊंगा मम्मी। आपने मुझसे जो भी आशाएं बांधी हैं उन्हें मैं अवश्य पूरी करूंगा। आप लोग देखना मैं आईआईटी में प्रवेश लेकर ही दम लूंगा।'

बीमारी की वजह से अंशु को दो-तीन बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। सलाइन चढ़ाने हेतु नस ढूंढने के लिए बार-बार सुई चुभाने पर भी वह न कभी रोया और न कभी चिल्लाया। वह डॉक्टर को हरसंभव सहयोग करता। ऑपरेशन थिएटर में दो-दो घंटे की मशक्कत के बाद अंशु के सहयोग और उसके चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी मुस्कान को देखकर डॉ. अशोक पोरवाल भी आश्चर्य करने लगते। डॉक्टर के पूछने पर अंशु बिना तुतलाए पूरे वाक्य के साथ उत्तर देकर उन्हें हैरत में डाल देता था।

कक्षा तीसरी से अंशु की मांसपेशियों की शीर्णता (डिटोरियेशन) का क्रम शुरू हो गया था। हाथ-पैर की अंगुलियों से प्रारंभ होकर इसका असर शनै:-शनै: पूरे शरीर में फैलता चला गया। लगभग सालभर से कुछ देर कुर्सी पर बैठने के बाद बिस्तर पर लेटे रहना ही उसकी नियति बन गया है। मगर बिस्तर पर हमेशा लेटे रहना भी उसे पसंद नहीं है। वह बीच-बीच में या तो टीवी पर आने वाले कार्यक्रमों को देखता है या अपने छोटे भाई की मदद से कम्प्यूटर और नेट पर दुनिया-जहान की जानकारियां लेता रहता अथवा अपने कोर्स की किताबों को गंभीरता से पढ़ता।

हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर उसका कमांड रहा इसीलिए वह समान अधिकार के साथ दोनों भाषाओं में अपने मन व दिलोदिमाग में आने वाले विचारों और भावों को कविताओं में गूंथने का प्रयास करता है। क्रिकेट में अंशु की गहरी दिलचस्पी रही। क्रिकेट के बारे में कोई भी प्रश्न पूछो, उसका जवाब वह तुरंत दे देता। टीवी पर क्रिकेट व फुटबॉल मैच, न्यूज एवं डिस्कवरी चैनल के अलावा और किसी कार्यक्रम में उसकी रुचि नहीं थी।

मुझे अपने बेटे पर नाज है।

अगले पेज पर पढ़ें बाल कवि अंशु से बातचीत, जब वह हमारे बीच मुस्कुराता था


* बाल कवि अंशु से शशीन्द्र जलधारी की बातचीत

बाल मन और ऊंचे विचार

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क्या 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे से 14 वर्ष की अल्पायु में ऐसी कविताएं रचने की उम्मीद की जा सकती है जिनमें नैतिकता व आध्यात्मिकता की महक हो और जिनकी हर पंक्ति सकारात्मक सोच एवं विचारों में गुंथी हो। जी हां, बालकवि अंशुमन दुबे एक ऐसी ही विलक्षण प्रतिभा का नाम है। सहसा यकीन तो नहीं होता कि इतने छोटे से बाल-मन में भी इतने ऊंचे विचार आ सकते हैं। लेकिन अंशु की रचनाएं पढ़कर और उससे बातचीत करके उसकी तीक्ष्‍ण बुद्धि व प्रतिभा पर विश्वास करना ही पड़ता है।

खुलते हैं अनजाने पहलू
अंशु से जब पूछा गया कि क्या धर्म व अध्यात्म में उसकी गहरी रुचि है और वह संत-महात्माओं के प्रवचन सुनने जाता है।

अंशुमन दुबे- 'ऐसी किसी भी बात पर जब हम गहराई से विचार करने लगते हैं तो उसके कई अनजाने पहलू खुलने लगते हैं या सामने आने लगते हैं। गीता, रामायण, महाभारत तथा अन्य धर्मों के पवित्र ग्रंथ पढ़ना चाहता हूं।'

सभी ग्रंथ देते हैं प्रेरणा

'ज्ञान कहीं से और कैसे भी प्राप्त हो, हमें वह पाने की कोशिश करना चाहिए। संसार के सभी धर्मग्रंथों में अच्छी-अच्छी ज्ञानवर्धक बातें बताई गई हैं, जो हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने और जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा व मार्गदर्शन देती हैं।'

कविता लिखने का शौक

अंशु कक्षा नौवीं में पढ़ रहा है। पढ़ने-लिखने में होशियार है। उसने अब तक की सभी परीक्षा में कक्षा में अव्वल अथवा दूसरे पायदान पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

कविताएं लिखने का शौक कब से पैदा हुआ?

अंशुमन दुबे- 'लगभग सालभर से लिख रहा हूं।'

इसके पहले से क्यों नहीं?

अंशुमन दुबे- बीमारी तो कक्षा तीसरी से ही शुरू हो गई थी। मगर नौवीं कक्षा तक बीमारी ने पूरे शरीर को जकड़ लिया। हाथ-पैरों ने काम करना बंद कर दिया। इस कारण स्कूल जाने से भी वंचित हो गया। इस प्रकार बीमारी ने मुझे जुलाई 08 से घर में ही रहकर पढ़ाई करने को विवश कर दिया है।'

'घर में पढ़ाई के दौरान मैंने फ्री समय का सदुपयोग करने तथा उसमें कोई 'क्रिएटिव वर्क' करने के बारे में सोचा। एक रोज ऐसे ही फ्री टाइम में मेरे मन में कवितानुमा दो-तीन लाइनें उपजीं। मैंने उन्हें तत्काल अपनी कॉपी में लिखवा लिया। बस, इसी तरह कविता लिखने के प्रति मेरी अभिरुचि जागी। बाद में उन्हीं पंक्तियों को आगे बढ़ाया और दो पैराग्राफ लिख दिए। इस पहली कविता का शीर्षक दिया- 'वीर परिचय'। मम्मी को कविता बताई तो उन्हें काफी पसंद आई। उन्होंने मुझे इस शौक को आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी।

30 कविताएं लिखीं

अंशु के मुताबिक उसने एक साल में 25 और अंग्रेजी में 5 कविताएं लिखी हैं। वह स्वीकार करता है कि उसकी कविताओं में अभी सुधार की काफी गुंजाइश है और वह इस दिशा में निरंतर प्रयत्नशील रहेगा। उसने यह भी भरोसा दिलाया कि वह हिन्दी व अंग्रेजी के श्रेष्ठ कवियों की पुस्तकें पढ़ने की कोशिश करेगा ताकि वह जान सके कि अच्छी व श्रेष्ठ कविताएं किसी तरह लिखी जाती हैं। इसका एक और फायदा यह होगा कि उसके पास शब्दों का समृद्ध भंडार होगा जिससे उसे कविता लेखन में काफी मदद मिलेगी। चूंकि कविताएं लिखते हुए उसे अभी एक वर्ष ही हुआ है, अतएव इस बारे में शायद उसकी हिन्दी की टीचर और उसके ज्यादातर दोस्तों को भी अभी पता नहीं है, न ही उसकी कविता स्कूल मैग्जीन में छप पाई है। उसकी कोशिश है कि वह विविध प्रकार की कविताएं लिखने का यत्न करे।

हिन्दी व संस्कृत में विशेष रुचि

अन्य विषयों के साथ हिन्दी व संस्कृत भाषा में अंशु की विशेष रुचि रही है इसलिए उसे परीक्षाओं में इन दोनों विषयों में 90 प्रतिशत से अधिक अंक मिलते रहे हैं। अंशु का कहना है कि हरिवंशराय बच्चन, सोहनलाल द्विवेदी और सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' उसके सबसे प्रिय कवि हैं। गूढ़ या गहरे अर्थ वाली कविताएं उसे बहुत भाती हैं। अंशु यह भी कहता है कि वह अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाला विद्यार्थी है। स्कूल में हिन्दी व संस्कृत भाषा में वह कहीं पिछड़ न जाए इसलिए वह इन दोनों विषयों को गंभीरता से पढ़ता है और उनके पाठों को गहराई से जानने व समझने की चेष्टा करता है।

मन में टीस जरूर है, मगर...

अंशु के मन में बीमारी की वजह से स्कूल न जा पाने की टीस जरूर है और वह इसके लिए छटपटाता भी है। वह चाहता है कि उसके छोटे भाई और दोस्तों की तरह वह भी खेले-कूदे, दौड़े-भागे, नाचे-गाए और साइकल पर स्कूल जाए। उसे पूरा भरोसा है कि 'वह एक दिन जरूर ठीक हो जाएगा और तब वह अपनी सारी इच्छाएं व आकांक्षाएं पूरी करेगा।'

जो चाहता है, कर लेता है

एक सवाल के जवाब में अंशु ने कहा कि वह अपनी बीमारी के कारण कतई निराश व हताश नहीं है। वह अपनी शक्ति व क्षमता के भीतर जो भी चाहता है, वह कर लेता है। उसे उम्मीद है कि बीमारी एक रोज उसकी हिम्मत व हौसले के सामने हार मान लेगी। ईश्वर में उसकी पूरी आस्था और विश्वास है। उसे भरोसा है कि ईश्वर उसके साथ अच्‍छा ही करेंगे।

पसंदीदा कलाकार

अमिताभ बच्चनजी। अंशु का कहना है, 'मुझे उनकी सादगी और उनका व्यवहार बहुत आकर्षित करते हैं। मैं उनसे एक बार मिलता चाहता हूं।'

बनना है सॉफ्टवेयर इंजीनियर

अखबार उठाकर पढ़ नहीं पाता इसलिए वह टीवी चैनलों पर न्यूज रोजाना सुन-देख लेता है। जीवन का लक्ष्य क्या है? अंशु ने बताया कि वह आईआईटी में प्रवेश लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता है। नेट पर जाकर वह आगे की पढ़ाई में काम आने वाली जानकारियां देखता और पढ़ता रहता है।

अगले पेज पर पढ़ें अंशुमन के प्राचार्य का आशीष

* अंशुमन के प्राचार्य का आशीष


फा. थंकचन्
प्राचार्य,
सेंट पॉल स्कूल, इंदौर

जीवन को सफल बनाने के लिए सबसे पहले मन को जीतना है। मन को जीतने की क्षमता हर एक में है, लेकिन उस क्षमता को पहचानकर सही दिशा देने में कम ही लोग कामयाब होते हैं। सपनों को साकार बनाने के लिए इच्‍छाशक्ति के साथ जो आगे बढ़ते हैं, उनके लिए चुनौतियां कभी बाधा नहीं बनतीं।

नौवीं कक्षा के अंशुमन दुबे के यह साबित कर दिया है कि सफलता हासिल करना परिश्रमी व्यक्ति के लिए आसान है। उन्होंने अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से प्रकट कर सराहनीय कार्य किया है। ये कविताएं दार्शनिक एवं प्रेरणादायक हैं। इनमें निराश मन के लिए आशा की किरण है। ये ईश्वरत्व का बोध जगाते एवं भटके हुओं को सिद्धि मार्ग बताती हैं। कुछ कविताओं में माता-पिता एवं गुरुजनों के प्रति आदर, सम्मान और देशभक्ति की सलाह है।

मैं उन्हें उनकी कविताओं के लिए बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि ये कविताएं बाल पाठकों के लिए प्रेरणादायक होंगी।

अगले पेज पर अंशुमन की कविताएं

* वीर परिचय
बालकवि अंशुमन दुबे

आज और अभी से यह ठान लो तुम,
दुनिया के इस झूठे सच को जान लो तुम।
दूसरों पर और निर्भर न रहो,
अपने आप को पहचान लो तुम।

तुम्हारे अंदर हैं असीम क्षमताएं,
सर्वप्रथम निर्धारित करो अपनी अभिलाषाएं।
परिश्रम कर प्रबल करो अपनी संभावनाएं,
सतत मेहनत करने पर पूर्ण होंगी तुम्हारी आकांक्षाएं।

दुनिया के भंवर में,
साहस के गीत गाकर चलना है।
आएं लाख बाधाएं तो क्या,
हमें जीत पाकर चलना है।

जो आपत्तियों को सहज ही पार कर जाएगा,
पथ के शूलों पर से हंसता हुआ गुजर जाएगा।
संसार में है बहुत कीचड़ मगर;
अच्छाई का कमल बनकर खिल जाएगा।

साज-ए-दर्द पर हर्ष के गीत गुनगुनाएगा,
संसार के सभी लोगों में
श्रद्धा की भावभीनी जोत जला पाएगा,
वह भारत मां का वीर पुत्र कहलाएगा।


* माता-पिता
बालकवि अंशुमन दुबे

मां-बाप ही यहां सिर्फ अपने हैं;
शेष हर व्यक्ति यहां पराया है।
उन्होंने ही सजाए तुम्हारे सपने हैं;
शेष दुनिया तो सिर्फ एक सराया है।

जीवन की इस जटिल डगर में,
कठिनाइयों के अनंत नगर में।
प्रेम की धारा भर ममता की गागर में,
जिसने पाला तुम्हें करुणा के भवसागर में।

जिसने दिया तुम्हें सबल आधार है,
जिससे ही चलता तुम्हारा संसार है।
मानना तुम्हें सदा उसका आभार है,
होनी तभी तुम्हारी नौका पार है।

करुणामयी मां का हृदय जैसे,
चाहत का पैमाना है।
ममतामयी मां का आंचल जैसे,
आतप में शीतल शामियाना है।

पिता हमारे कष्टों को स्वयं धरे,
नि:स्वार्थ हमारा पोषण कर सब दु:ख दूर करे।
वह पालनहार दोष दूर कर हम में गुणधार भरे।
वह परमपिता हमारे लिए है भगवंत हरे।

उनके प्रति अपने कर्तव्यों को समझो बंधु,
तुम हो सीमित जल राशि वे हैं अथाह सिंधु।
जिनके बिना तुम्हारा अस्तित्व निराकार है,
जिनके आशीर्वाद की छाया में तुम्हारा जीवन निर्विकार है।

मां-बाप धरती पर विधाता का अवतार हैं,
बड़े भाग्यशाली हो जो पाया उनका प्यार है।
यदि कोई इस दु‍निया में साकार है,
तो उसे आकार देने वाला कितना निपुण कलाकार है।

जिंदगी
बालकवि अंशुमन दुबे
जिंदगी ही वह समय है,
जो तुम्हें धरा पर गुजारना है।
तुम्हें अब होना कर्मकय है,
जिंदगी अपनी संवारना है।

जिंदगी से जिंदगीभर का नहीं होता यह साथ है,
जीवन-मरण का प्रश्न नहीं, यह तो विधाता के हाथ है।
लेकिन प्रण करो जब तक यह जिंदगी संग है,
जीवन का हर एक क्षण एक नई उमंग है।

निराशा जिंदगी का नाम नहीं है,
जियो न सिर्फ जीने के लिए।
जिंदगी का लक्ष्य तुम्हारे अंदर कहीं है,
जिंदगी तो है आनंद का रस पीने के लिए।

ऐ जिंदगी तुझसे गिला नहीं है जैसी है पसंद है,
जिंदगी का हर पड़ाव आनंद की नई तरंग है।
जिंदगी को जीने का यही सही ढंग है,
फिर क्यों कहते रहें जिंदगी यह बेरंग है।

प्रभु ने जीवन के रूप में अनोखा अवसर दिया तुम्हें,
अपनी क्षमताओं व प्रतिभाओं को प्रदर्शित करना है।
ईश्वर ने तो जग का महासमर दिया तुम्हें,
अपनी भक्ति व प्रयासों से इसे संरक्षित करना है।

दुख है सच्चा मित्र कभी न छोड़ेगा हाथ,
यह जानना ही सबसे अधिक जरूरी है।
सुख अच्छे समय तक है फिर न देना साथ,
मंजिल से दो कदमभर की दूरी है। (बालकवि अंशुमन की शेष कविताओं के लिए नियमित पढ़ें नन्ही दुनिया)