गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी

राजा मिहिर भोज कौन थे, जानिए 10 रोचक बातें

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कन्नौज के महान सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर फिलहाल विवाद चल रहा है, लेकिन जानकार करते हैं सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, अग्निवंशी, ऋषिवंशी, नागवंशी, भौमवंशी आदि वंशों में बंटा हुआ है छत्रिय वंश। जहां तक गुर्जर समुदाय की बात हैं वे सभी सूर्यवंशी हैं। भारत में गुर्जर, जाट, पटेल, पाटिदार, मीणा, राजपूत, चौहान, प्रतिहार, सोलंकी, पाल, चंदेल, मराठा, चालुक्य, तोमर आदि सभी छत्रिय वंश से संबंध रखते हैं। आओ जानते हैं सम्राट मिहिर भोज के जीवन के संबंध में 10 रोचक बातें।
 
 
1. कब से कब तक किया शासन : सम्राट मिहिर भोज कन्नौज के सम्राट थे। उन्होंने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल के लंबे समय तक शासन किया था। सम्राट मिहिरभोज की पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था। मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दुनिया मे मशहूर हुए। 
 
2. सम्राट के राज्य कि सीमाएं : सम्राट मिहिर भोज के राज्य का विस्तार वर्तमान मुल्तान से लेकर बंगाल तक और कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक फैला हुआ था। उनके राज्य की सीमाओं के अंतर्गत वर्तमान भारत के हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और ओडिशा आते हैं। इस विशाल साम्राज्य की राजधानी कन्नौज में थी।
 
3. मित्र और शत्रु : कहते हैं कि सम्राट के मित्रों में काबुल के राजा ललिया शाही, कश्मीर के राजा अवन्ति वर्मन, नेपाल के राजा राघवदेव और असम के राजा उनके मित्र थे।
 
4. विदेशी शत्रु : अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी सम्राट मिहिरभोज के सबसे बड़े शत्रु थे। अरबों ने हमले के कई प्रयास किए लेकिन वे मिहिर भोज की विशाल सेना के सामने टिक नहीं सके। उनकी सेना हर हर महादेव और जय महाकाल की ललकार के साथ रणक्षेत्र में शत्रुओं पर कहर बरपा देती थी। कभी रणक्षेत्र में भिनमाल, कभी हकड़ा नदी का किनारा, कभी भड़ौच और वल्लभी नगर तक अरब हमलावरों के साथ युद्ध होता रहता था।
 
5. शिव भक्त थे मिहिर भोज : सम्राट मिहिर भोज उज्जैन के महाकाल बाबा के परमभक्त थे।
 
6. सोने और चांदी के सिक्के : सम्राट के काल में सोने और चांदी के सिक्के प्रचलन में थे। मिहिर भोज की एक उपाधि ‘आदिवराह’ भी थी. उनके समय के सोने के सिक्कों पर वराह की आकृतियां उकेरी गई थी। कहते हैं कि मिहिर भोज के काल में जनता सुखी थी। अपराधियों को कड़ी सजा मिलती थी और सभी के साथ न्याय होता था। व्यापार और कृषि को बढ़ावा दिया जाता था। राजधानी कन्नौज में 7 किले और दस हजार मंदिर थे।
 
7. लड़ाई : उन्होंने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायण लाल को परास्त कर उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। दक्षिण के राष्ट्रकुट राजा अमोघवर्ष को पराजित कर दिया था। सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पराजित करके सिन्ध को अपने साम्राज्य में मिला लिया था और मुल्तान के मुस्लिम शासक को वे अपने नियंत्रण में रखते थे। कन्नौज पर अधिकार के लिए बंगाल के पाल, उत्तर भारत के प्रतिहार और दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासकों के बीच लगभग 100 वर्षों तक संघर्ष होता रहा जिसे इतिहास में 'त्रिकोणात्मक संघर्ष' कहा जाता है।
 
8. मित्रों की रक्षार्थ भेजी सेना : कहते हैं कि मिहिर भोज ने काबुल के राजा ललिया शाही को तुर्किस्तान के आक्रमण से बचाया था। दूसरी ओर नेपाल के राजा राघवदेव को तिब्बत के आक्रमणों से बचाया था। परंतु उनकी पालवंशी राजा देवपाल और दक्षिण के राष्‍ट्‍कूट राजा अमोघवर्ष शत्रुता चलती रहती थी।
 
9. संन्यास : सम्राट मिहिर भोज जीवन के अंतिम वर्षों में अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यास ले लिया था। मिहिरभोज का स्वर्गवास 888 ईस्वी को 72 वर्ष की आयु में हुआ था।
 
10. रिफरेन्स : स्कंद पुराण के प्रभास खंड में भी सम्राट मिहिरभोज की वीरता, शौर्य और पराक्रम के बारे में विस्तार से वर्णन है। कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगिणी में सम्राट मिहिरभोज का उल्लेख किया है। 915 ईस्वी में भारत भ्रमण पर आए बगदाद के इतिहासकार अल मसूदी ने भी उनके राज्य की सीमा, सेना और व्यवस्था का वर्णन किया है। इसके अलावा मध्यकाल और आधुनिक काल के ऐसे बहुत से इतिहासकार है जिन्होंने सम्राट मिहिर भोज के बारे में लिखा है।