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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 15 मार्च 2025 (15:05 IST)

पान के बीड़े से करते हैं लड़की को प्रपोज, भीलों के भगोरिया मेले का शिव और पार्वती से क्या है संबंध?

आदिवासियों के भगोरिया महोत्सव मेले का अनसुना इतिहास

पान के बीड़े से करते हैं लड़की को प्रपोज, भीलों के भगोरिया मेले का शिव और पार्वती से क्या है संबंध? - Bhagoriya Mela Interesting story in hindi  unknown history of bhagoria haat
Bhagoriya Mela Interesting story in hindi: फागुन के रस में भिगोने जब आ जाता है भगोरिया, तो गांव-गांव, शहर-शहर मस्ती की धूम में डूब जाते हैं और भगोरिया, फागुन के दामन पर प्रेम की मुहर लगा देता है। एक अनुरागी कामना लिए, उमंग और उल्लास का उत्सव, भागोरिया, होली के एक सप्ताह पहले ही विशेष चर्चा में रहता है। इस पर्व की खासियत यही है कि यहां सारी कटुता, भेदभाव और अवसाद दूर हो जाते हैं। इसी के साथ तमाम संकोचओं और बंधनों से निकलकर, जीवन की ये रंगभूमि एक अनूठे उत्सव में बदल जाती है। ज्ञात हो, मार्च 2023 में, आदिवासी अंचल का भगोरिया, राजकीय पर्व और सांस्कृतिक धरोहर को मानाने की शासन ने घोषणा की भी की थी। इस दिलकश मंजर को, यूं तो समूचे आदिवासी अंचल के गांव-गांव में, परंपरागत रूप से मनाया जाता है, फिर भी अलीराजपुर, वालपुर, झाबुआ खरगोन और टांडा का भगोरिया हाट बाजार काफी चर्चा में रहता है।  
 
क्या है भगोरिया मेला: पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल, धार, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी और खरगोन जिलों में होली के सात दिनों पूर्व जनजाति समाज का परंपरागत भगोरिया, आदिवासी परिवारों के लिए तो जैसे ये प्रकृति अनुपम उपहार साबित हो जाता है। जहां संस्कृति और परंपराओं का अनोखा संगम, भगोरिया हाट मेले के रूप में लोगों के सामने आता है। यह सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि परंपरा, प्यार और रंगों से सराबोर एक उत्सव है। भगोरिया मेले को 'भगोरिया हाट महोत्सव' भी कहा जाता है। इसे भील और भिलाला जनजातियों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। इस मेले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां लोग न केवल आनंद और उत्साह में डूबते हैं, बल्कि यह प्रेम और विवाह का प्रतीक भी माना जाता है। 
 
भगोरिया का अर्थ: "भगोरिया" शब्द "भगोर" से निकला है, जिसका अर्थ है "प्रेम का प्रस्ताव"। यह मेला मुख्य रूप से प्यार और मिलन का प्रतीक माना जाता है। यहां युवा लड़के और लड़कियां परंपरागत वेशभूषा में सजधज कर आते हैं और एक-दूसरे को पसंद करने पर पान का बीड़ा देकर अपने प्रेम का इज़हार करते हैं। अगर लड़की पान का बीड़ा स्वीकार कर लेती है, तो इसका अर्थ होता है कि उसने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। भील-बाहुल इलाकों में जहां इसे "भगोरिया" कहते हैं, वहीं भिलाला बाहुल्य क्षेत्र जैसे धार, बड़वानी और अलीराजपुर तरफ, इसे भोंगरिया कहा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है की इस पर्व का नाम "भगोरिया" इसलिए भी पड़ा है क्यूंकि यहां युवक, युवतियों को भगा कर ले जाते हैं और शादी रचते हैं। 
 
कैसे मनाया जाता है भगोरिया: भगोरिया मेले के दौरान आदिवासी लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर हाट में आते हैं। ढोल-मांदल की थाप पर नाचते-गाते लोग अपने आनंद का इजहार करते हैं। इस मेले की एक अनोखी परंपरा है - प्रेम प्रस्ताव। मन जाता है कि युवा लड़के-लड़कियां एक-दूसरे को पान का बीड़ा पेश करते हैं। अगर लड़की पान का बीड़ा स्वीकार कर लेती है, तो दोनों का रिश्ता तय माना जाता है। इस उत्सव का यह अनूठा पहलू इसे और भी विशेष बनाता है। इस मेले में तरह-तरह की दुकानें लगती हैं, जहां कपड़े, आभूषण, खाद्य सामग्री और आदिवासी हस्तशिल्प बिकते हैं।
 
भगोरिया मेले का अनोखा इतिहास : भगोरिया मेले की शुरुआत हजारों साल पहले मानी जाती है। मान्यता है कि इस पर्व का आरंभ राजा भोज के समय में हुआ था, जब फसल कटाई के बाद खुशी मनाने के लिए इसे मनाया जाता था। उस समय से लेकर आज तक यह मेला प्रेम और विवाह का प्रतीक बना हुआ है। इस मेले की खासियत यह है कि यहां किसी प्रकार का सामाजिक बंधन नहीं होता और युवा स्वतंत्रता से अपने जीवनसाथी का चयन कर सकते हैं। इसके नाम को लेकर, इसकी उतपत्ति और चलन को लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन ऐसा कोई ऐतिहासिक वर्णन लिखित रूप में नहीं मिलता। साथ ही, बलिदानी छित सिंह की पुण्य स्मृति में भी मनाया जाता है, ताकि भगोरिया में आने वाले लोग, अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिवीर छित सिंह की अमर और अमिट गाथा को जान सकें। 
 
इससे परे, इतिहासकारों का एक मत ये भी है कि भगोरिया पर्व की शुरुआत लगभग सात सदी पहले भंगू नायक ने की थी। झाबुआ से 15 किलोमीटर दूर, भगोर गांव में कृषि भंगू की तपोस्थली रही है।कुछ लोगों का ये भी मानना है कि भगोर गांव का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है, आदिवासी शिव जी को भगोर देव भी कहते हैं। धुलेंडी के एक दिन पहले आखरी हाट बाजार सजता है। 
 
आधुनिक समय में भगोरिया: समय के साथ-साथ भगोरिया मेले का स्वरूप भी बदल गया है। अब इस पर्व में न केवल ग्रामीण लोग बल्कि शहरी लोग भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। मेले में कारीगरों की दुकानें, खानपान की चीजें और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी देखने को मिलती है। यह मेला केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था का माध्यम भी बन गया है। यह मेला प्रेम और विवाह का प्रतीक भी माना जाता है। यहां युवा लड़के-लड़कियां अपने लिए जीवनसाथी जो चुनते हैं। मगर वास्तविकता यह है कि यह ऐसी परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है खुशियां जाहिर करती इस परंपरा के बीच अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है और युवा अपना मनचाहा जीवन साथी भी चुनते हैं। हालांकि इस प्रथा को लेकर भी कई तरह की किवदंतियां आज भी मौजूद हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि आज के समय में ये प्रेम प्रस्ताव की प्रथा नहीं होती। भगोरिया उत्सव मेला केवल अपने जान-पहचान वालों से और विवाह के पहले से तय किए गए रिश्तों में युवक-युवतियों के मिलने-जुलने तक सीमित है।  


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