मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Kalash Pujan : कलश पूजन का महत्व और मंत्र

Kalash Pujan : कलश पूजन का महत्व और मंत्र - kalash ki puja kyon
सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। जैसे मांगलिक कार्यों का शुभारंभ, नया व्यापार, नववर्ष आरंभ, गृह प्रवेश, दिवाली पूजन, यज्ञ, अनुष्ठान, दुर्गा पूजा आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।
 
धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि के दिनों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा मां दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।
 
यह कलश विश्व ब्रह्मांड, विराट ब्रह्मा एवं भू-पिंड यानी ग्लोब का प्रतीक माना गया है। इसमें सम्पूर्ण देवता समाए हुए हैं। पूजन के दौरान कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर स्थापित किया जाता है।
 
कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
 
कलश में भरा पवित्र जल इस बात का संकेत हैं कि हमारा मन भी जल की तरह हमेशा ही शीतल, स्वच्छ एवं निर्मल बना रहें। हमारा मन श्रद्धा, तरलता, संवेदना एवं सरलता से भरे रहें। यह क्रोध, लोभ, मोह-माया, ईष्या और घृणा आदि कुत्सित भावनाओं से हमेशा दूर रहें।
 
कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी 4 अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है।
 
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है।
 
इसी कारण कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है।
 
 पूजा घर में स्थापना करने के क्या है 3 फायदे
 
1. अमृत का घड़ा : यह मंगल-कलश समुद्र मंथन का भी प्रतीक है। सुख और समृद्धि के प्रतीक कलश का शाब्दिक अर्थ है- घड़ा। जल को हिन्दू धर्म में पवित्र माना गया है। अत: पूजा घर में इसे रखा जाता है। इससे पूजा सफल होती है। यह कलश उसी तरह निर्मित है जिस तरह की अमृत मंथन के दौरान मदरांचल को मथकर अमृत निकाला था। जैसे जटाओं से युक्त नारियल मदरांचल पर्वत है। कलश विष्णु के समाय और उसमें भरा जल क्षीरसागर के समान है। उस पर बंधा सूत वासुकि नाग है जिससे मंथन किया गया था। यजमान और पुरोहित सुर और असुरों की तरह हैं या कहें कि मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय इसी तरह का मंत्र पढ़ा जाता है।
 
2. ईशान कोण में जल की स्थापना : वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण में जल की स्थापना करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। अत: मंगल कलश के रूप में जल की स्थापना करें। घर का ईशान कोण हमेशा खाली रखें और वहां पर मंगल कलश की स्थापना करें।
 
3. वातावरण बना रहता है शुद्ध और सकारात्मक : ऐसा कहते हैं कि मंगल कलश में तांबे के पात्र में जल भरा रहता है जिससे विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। नारियल में भी जल भरा रहा है। दोनों के सम्मिलन से ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के जैसा वातावरण निर्मित होता है जो वातावरण को दिव्य बनाती है। इसमें जो कच्चा सूत बांधा जाता है वह ऊर्जा को बांधे रखकर वर्तुलाकर वलय बनाता है। इस तरह यह एक प्रकार से सकारात्मक और शांतिदायक ऊर्जा का निर्माण करता है जो धीरे धीरे संपूर्ण घर में व्याप्त हो जाती है।
 
कैसे रखा जाता मंगल कलश : ईशान भूमि पर रोली, कुंकुम से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर उस पर यह मंगल कलश रखा जाता है। एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकल उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर, उसके गले पर मौली (नाड़ा) बांधी जाती है।
 
मंत्र और प्रार्थना 
 
हे वरुणदेव! तुम्हें नमस्कार करके मैं तुम्हारे पास आता हूं। यज्ञ में आहुति देने वाले की याचना करता हूं कि तुम हम पर नाराज मत होना। हमारी उम्र कम नहीं करना आदि वैदिक दिव्य मंत्रों से भगवान वरुण का आवाहन करके उनकी प्रस्थापना की जाती है और उस दिव्य जल का अंग पर अभिषेक करके रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। कलश पूजन की प्रार्थना के श्लोक भी भावपूर्ण हैं। उसकी प्रार्थना के बाद वह कलश केवल कलश नहीं रहता, किंतु उसमें पिंड ब्रह्मांड की व्यापकता समाहित हो जाती है।
 
कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित:।
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।।
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा।
ऋग्वेदोअथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्ण:।।
अंगैच्श सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।
अत्र गायत्री सावित्री शांतिपृष्टिकरी तथा।
आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा:।
आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।
 
हमारे ऋषियों ने छोटे से पानी के कलश/घट में सभी देवता, वेद, समुद्र, नदियां, गायत्री, सावित्री आदि की स्थापना कर पापक्षय और शांति की भावना से सभी को एक ही प्रतीक में लाकर जीवन में समन्वय साधा है। बिंदु में सिंधु के दर्शन कराए हैं।