हमने सोचा न था
डॉ. शंभुनाथ आचार्य
वक्त धोखा इस तरह दे जाएगा सोचा न था,आदमी इस हद तलक गिर जाएगा सोचा न था।स्वर्ग धरती पर उठा लाने की कोशिश में स्वयं,आदमी ही स्वर्ग को उठ जाएगा सोचा न था।सींच कर अपने पसीने से जिसे पाला किए,बागवां उस फूल से छल जाएगा सोचा न था।हम बनाते ही रहे नक्शा नए निर्माण का,मृत्यु में निर्माण यों ढल जाएगा सोचा न था।वक्त की जादूगरी समझा न कोई आज तक,कब कहाँ कैसे सभी छूट जाएगा सोचा न था।साभार : कथाबिंब