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मैं चाँद देखा करती हूँ
शरद की बादामी रात में नितांत अकेली मैं चाँद देखा करती हूँ तुम्हारी जरूरत कहाँ रह जाती है, चाँद जो होता है मेरे पास '
तुम-सा' पर मेरे साथ मुझे देखता मुझे सुनता मेरा चाँदतुम्हारी जरूरत कहाँ रह जाती है। ढूँढा करती हूँ मैं सितारों को लेकिन मद्धिम रूप में उनकी
बिसात कहाँ रह जाती है, कुछ-कुछ वैसे ही जैसे चाँद हो जब साथ मेरे तो तुम्हारी जरूरत कहाँ रह जाती है।