महकते गुलाब-रिश्ते पर
फाल्गुनी
मेरे महकते गुलाब-रिश्ते पर आज तुम्हारे शब्दों के काँटे उग आए हैं, चंदन, केसर और केवड़े के बीच रखा मेरा-तुम्हारा रिश्ता अचानक एक तीखी गंध के साथ उबकाई लेने लगा और मेरी अनुभूतियों की रातरानी, शुद्ध मन का पारिजात, तुमसे जुड़ी खुशियों का चंपा और तुम्हें देखने को तरसती आँखों के लाल गुलमोहर सब संबंधों की क्यारी से उखड़ बीच रास्ते में आ पड़े हैं,मेरे-तुम्हारे बीच क्योंतीखे बबूल आ खड़े हैं।