नर्मदा में चाँदनी खिलती है
उमेश महतो मछुवारिनटूटे तवे पर अपना दिल पकाती हैनर्मदा में चाँदनी खिलती है, मुस्कुराती हैदूर कहीं मल्लाह कोई दिल सोज राग अलापता हैजिसका नन्हा बेटारेवा की रेत मेंकिरणों की नृत्य नाटिका रचता है जीवन के रस में सनीमछुवारिन की रोटी आपदा मेंकभी सूखती नहीं, कुम्हलाती नहींदिल की गहराइयों से उठे लोक संस्कृति के मीठे राग संघर्षों मेंकभी कड़ुवाते नहीं, धुँधलाते नहीं उन छोटे पैरों से लयबद्ध निकलेलोक संस्कृति के अनूठे नाचजीवन के प्रवाह मेंकभी रुकते नहीं, थकते नहींरोटी रेवा रेत राग के लोकचित्रजनमानस से कभी मिटते नहीं!