तुम ख्याल बन मेरी अधजगी रातों में उतरे हो. मेरे मुस्काते लबों से लेकर... उँगलियों की शरारत तक तुम सिमटे हो मेरी करवट की सरसराहट में
कभी बिखरे हो खुशबू बनकर... जिसे अपने देह से लपेट, आभास लेती हूँ तुम्हारे आलिंगन का जाने कितने रूप छुपे हैं तुम्हारे, मेरी बन्द पलकों के कोनों में... जाने कई घटनाएँ हैं और गढ़ी हुई कहानियाँ जिनकी विभिन्न शुरुआत हैं परंतु एक ही अंत स्वप्न से लेकर.. उचटती नींद तक मेरे सर्वस्व पर तुम्हारा एकाधिपत्य।