- लाइफ स्टाइल
» - साहित्य
» - काव्य-संसार
जैसे पानी
-
भवानी प्रसाद मिश्र जैसे पानी बहता है नदी में इस तरह बहा है खूनबीसवीं सदी में अब इक्कीसवीं में शायद समूचा आदमी बहेगादेखें, उसके बाद क्या कुछ बाकी बच रहेगा चंद्रमा शुक्र और मंगल तो क्या रहेंगे हमारे इतने विज्ञान को बैचारे मंगल वगैरा क्या सहेंगे सूरज का जरूर कुछ कह नहीं सकते मगर तब तक कम से कम तुम और हम तो नहीं रह सकते न सही 'जन' टिक जाए शायद '
जनवादी' कविता क्योंकि रूस तब हमारे यहाँ आज से भी ज्यादा रहेगाखून तब नदी के पानी से भी कुछ ज्यादा सम और गहरा बहेगा बेशक समता की दिशा में क्रांति के प्रभात से पहले वाली निशा में।