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गीली ओंस बूंद
फाल्गुनी
सूखी हुई टहनी पर टंगी गीली ओंस बूंद की तरह, टंगी है मेरी उम्मीद की थरथराती अश्रु-बूंद तुम्हारे जवाब के इंतजार में, धवल चांदनी गुजर गई और ठिठक गई है भोर, कांप रही है अब भी मेरी आशा की डोर, आदित्य-रश्मियों से जगमगा उठी नाजुक ओंस बूंद, लगा जैसे नाच उठा लरजती आस का नीला मोर..