बुधवार, 24 अप्रैल 2024
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Written By स्मृति आदित्य

कुँवारा रेशम

फाल्गुनी

Love poem | कुँवारा रेशम
मेरे मन की
कच्ची किनारियों पर
अब भी टँका है
तुम्हारी नजरों के
स्पर्श का
लटकन सितारा
झरा दो उसे,
कहीं से आकर
या उखाड़ दो,
क्योंकि उसकी
कसैली चमक से ज्यादा
प्यारी है मुझे अपनी सादी चुनरी
जिसके छोर में आज भी
कुँवारा रेशम गूँथा है।
अब समझी हूँ ‍कि
ुभ रहा है जो
वह तुम्हारी नजर का
कोमल सितारा था
जिस पर कभी
मैंने ही
रूपहले सपनों को वारा था।