कविता और जीवन
- महाराज कृष्ण संतोषी
रोज यह संकल्पकि जी रहा हूं जिस तरहउससे कुछ हटकर जिऊंरोज यह उदासी किएक और दिन बीत चलासंकल्प और उदासी के बीचजिया मैंने जीवनसौ-सौ विकल्पों के साथपर नहीं चुना कोई विकल्पन ही जिया कोई जोखिमयहां तक किमुझे करना था प्रेमनहीं कियामैं सीधा चला आयाकविता मेंप्रेम और मृत्यु से बचता हुआ।