अवरोह बहता आता था पानी की तरह
भीमसेन जोशी के गाए राग को सुनने की स्मृति
संगीत संसार के लिए यह क्षण आनंद की रागिनी में डूब जाने का है। शास्त्रीय संगीत के विलक्षण कलाकार पंडित भीमसेन जोशी भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किए जाएँगे। कवि मंगलेश डबराल ने उन पर सुंदर भावपूर्ण रचना लिखी है। वेबदुनिया पाठकों के लिए प्रस्तुत है मंगलेश डबराल की संवेदनशील रचना :राग दुर्गा एक रास्ता उस सभ्यता तक जाता थाजगह-जगह चमकते थे उसके पत्थरजंगल में घास काटती स्त्रियों के गीत पानी की तरह बहकर आ रहे थेकिसी चट्टान के नीचे बैठी चिड़ियाअचानक अपनी आवाज से चौंका जाती थी दूर कोई लड़का बाँसुरी पर बजाता था वैसे ही स्वर एक पेड़ कोने में सिहरता खड़ा थाकमरे में थे मेरे पिताअपनी युवावस्था में गाते सखि मोरी रूम-झूमकहते इस गाने से जल्दी बढ़ती है घाससरलता से व्यक्त होता रहा एक कठिन जीवन वहाँ छोटे-छोटे आकार थेबच्चों के बनाए हुए खेल-खिलौने घर-द्वारआँखों जैसी खिड़कियाँमैंने उनके भीतर जाने की कोशिश की देर तक उस संगीत में खोजता रहा कुछ जैसे वह संगीत भी कुछ खोजता था अपने से बाहरकिसी को पुकारता किसी आलिंगन के लिए बढ़ता बीच-बीच में घुमड़ता उठता था हारमोनियमतबले के भीतर से आती थी पृथ्वी की आवाजवह राग दुर्गा था यह मुझे बाद में पता चलाजब सब कुछ कठोर था और सरलता नहीं थीजब आखिरी पेड़ भी ओझल होने को थाऔर जगह-जगह भटकता था सोचता हुआ वह क्या थाजिसकी याद नहीं आईजिसके न होने की पीड़ा नहीं हुई तभी सुनाई दिया मुझे राग दुर्गासभ्यता के अवशेष की तरह तैरता हुआ मैं बढ़ा उसकी ओर उसका आरोह घास की तरह उठता जाता था अवरोह बहता आता था पानी की तरह। (
साभार : आवाज भी एक जगह है)