हिन्दी कविता : सजा
प्रसव वेदना का दर्द
झेल चुकी मां
खुशियों के संग पाती
नन्हें शिशु को ।
होठों से शीश चूमती
तभी कल्पनाएं भी जन्म लेने लगती
उसके बड़े हो जाने की ।
नजर न लगे
अपनी आंखों का काजल
अंगुली से निकाल
लगा देती है टीका
बीमारियों के टीके के साथ ।
भ्रूण हत्यारों को
सजा दिलाना जरुरी है
क्योंकि, कई मां
ममतामयी निगाहों से
आज भी खोज रही अपनी बच्चियों को ।
किंतु वे बेगुनाह
मां के दूध का कर्ज
कैसे अदा करेंगे ?
जो इस दुनिया में