शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. kabir ke dohe
Written By WD

गुरु की महिमा : पढ़ें कबीर क्या कहते हैं

गुरु की महिमा :  पढ़ें कबीर क्या कहते हैं - kabir ke dohe
कबीर को हम एक ऐसे संत के रूप में पहचानते हैं जिन्होंने हर धर्म, हर वर्ग के लिए अनमोल सीख दी है। प्रस्तुत है कबीर के गुरु के बारे में रचे गए दोहे : 

 
गुरु को कीजै दण्डवत, कोटि कोटि परनाम।
कीट ना जाने भ्रूंग को, गुरु करिले आप समान।।
 
इस साखी में गुरु को बार-बार प्रणाम करने के लिए कहा गया है, क्यों‍कि सद्गुरु ही शिष्य को अपने समान बना लेते हैं। जिस प्रकार कीड़ा भ्रूंगी (एक प्रकार की मक्खी) को नहीं पहचानता है, परंतु भ्रूंगी कीड़े को पकड़कर अपने समान बना लेता है इसलिए सद्गुरु को कोटि-कोटि प्रणाम है। 

गोविन्द और गुरु को नमन
दण्डवत गोविन्द गुरु, वन्दौं अब जन सोय।
पहिले भये प्रनाम तिन, नमो जु आगे होय।।
 
सर्वप्रथम प्रणाम ईश्वर के श्रीचरणों में उसके बाद गुरु की वंदना की गई है। उसके बाद जो वर्तमान में संतजन हैं व जो भूतकाल में थे और जो भविष्य में होंगे उन सभी को भक्तिभाव से प्रणाम किया गया है।

 
गुरु का मानसिक सुमिरन
 
गुरु जो बसै बनारसी, सीष समुंदर तीर।
एक पलक बिसरै नहीं, जो गुण होय सरीर।।
 
किसी कारणवश गुरु काशी में निवास करते हों और शिष्य समुद्र के किनारे। कहने का तात्पर्य ये है कि शिष्य गुरु से कितनी भी दूर क्यों न हो, वह उनके बताए हुए मार्ग पर ही चलता है। सच्चा शिष्य वही है, जो गुरु के बताए हुए ज्ञान को कभी भूले नहीं। यदि गुरु में कोई कमी रहती है तो भी वही उनके गुणों को स्मरण करता रहे।

गुरु-महिमा
 
सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत-दिखावनहार।।
 
सद्गुरु की महिमा अनंत है। गुरु ने शिष्य पर असंख्‍य उपकार किए हैं। उसने शिष्य के ज्ञान की असंख्य आंखें खोल दी हैं और अनंत परमेश्वर के दर्शन करवा दिए हैं।