शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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Written By Author राकेशधर द्विवेदी

हिन्दी कविता : नदी को बोलने दो...

हिन्दी कविता : नदी को बोलने दो... - Hindi river poems
नदी को बोलने दो
शब्द स्वरों के खोलने दो
उसकी नीरव निस्तब्धता
एक खतरे का संकेत है
यह इस बात की प‍ुष्टि है
कि नदी हुई समाप्त
शेष रह गई रेत है


 

 
बहती हुई नदी
जीवन का प्रमाण है
राष्ट्र का है गौरव
जीवंतता की पहचान है
 
यह उर्वरता और जीवन
प्रदान करती है
खुद कष्ट सहकर
दूसरों का कष्ट हरती है
 
यह जीवनदायिनी है
इसे अपने दुष्कर्मों से
न भयभीत करो
यह नीर नहीं संचती है
इसे नाले में न तब्दील करो
 
तुम्हारे पाप को ढोते-ढोते
वह कुछ थक-सी गई है
ऐसा लग रहा है कि
वह कुछ सहम-सिमट-सी गई है। 

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