बुधवार, 24 अप्रैल 2024
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Written By स्मृति आदित्य

ओ, ईद के सरल चाँद

फाल्गुनी

Love poem | ओ, ईद के सरल चाँद
ND
ओ, ईद के सरल चाँद
क्यों है इतना कठिन
तुम्हारा दीदार,

मेरे दिलबर की तरह
तुम हो या वो तुम्हारी तरह
कहना मुश्किल है
तुम्हारी धुँधलाती झलक की तरह।

वैसे एक ही तो बात है
तुम दोनों को ही
आकाश में होकर भी नहीं दिखना है
तुम दोनों को ही मेरे होकर भी
मेरे नहीं हो सकना है।

या खुदा, मत भेज फरिश्तों को
मुझ तक
नहीं पूरी कर पाएँगे वे मेरी फरियाद
नहीं ला सकेंगे वे उसे मेरे पास।

जिसके दिल में नहीं बचा
अब कोई कोना भी उदास
नहीं आती जिसे मेरी याद
अब कभी नहीं लौटेगा
जो बनकर मेरी प्यास।

ओ, ईद के सरल चाँद
तुम्हारा हल्का सा खुमार
आँखों में चढ़ा रहा शब भर,
वैसे ही मेरा चाँद रुका रहा
काँपती दुआओं में
थरथराते लब पर।

पलकों के खुलने पर,
हथेलियों के जुड़ने पर
आँसुओं के बहने पर
हर बार बस याद आया
वही एक प्यार
ओ, ईद के सरल चाँद
क्यों है इतना कठिन
तुम्हारा दीदार?