शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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Written By WD

वो कभी मिल जाए मुझको साँसों के करीब

Poem | वो कभी मिल जाए मुझको साँसों के करीब
जफर गोरखपुर
NDND
मर के जी उट्ठूँ किसी दिन,सनसनी तारी करूँ
तेरी आँखों के हवाले से खबर जारी करूँ

वो कभी मिल जाए मुझको अपनी साँसों के करीब
होंठ भी हिलने न दूँ और गुफ्तगू सारी करूँ

तू भी अपना और गमे दुनिया भी घर का एक फर्ज
किसका दिल रक्खू मियाँ किसकी दिल-आजारी करूँ

जाने ऐसी कौन सी बेनाम मजबूरी है ये
उससे नाखुश रहके भी उसकी तरफदारी करूँ

पी रहा हूँ मैं अभी एहसान उसका बूँद-बूँद
तिश्नगी मिट जाए तो बादल से गद्दारी करूँ

इत्तिफाकन बेवकूफों के कबीले में 'जफर'
मैं भी एक चालाक हूँ फिर क्यों न सरदारी करूँ।