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तुम जा रहे थे
फाल्गुनी
तुम जा रहे थे तुम्हारे पीछे उड़ रही थी धूल, भिगोती रही देर तक जैसे स्वर्ण-कण सी बरखा में नहा उठा हो दिल। तुम जा रहे थेतुम्हारे पीछे बरस रहे थे अमलतास, सहला रहे थे शाम तक जैसे बसंत की बहार में बँधा रहे हो आस। तुम जा रहे थे तुम्हारे पीछे थिरक रहे थे मयूर, बहला रहे थे तुम बिन जैसे बिदाई की रागिनी में बिखर गए हों सुर। तुम जा रहे थे तुम्हारे पीछे सुबक रही थी पगडंडियाँ, रोक कर हिचकियाँजैसे साथ दे रही हो रोती बचपन की सखियाँ। तुम जा रहे थे तुम्हारे पीछे खिला अकेला चाँद कच्चा और कुँवारा और कसक बन गई दिल में तुम्हारी एक तड़पती याद।