हवा, जो चंपा से बहकर आई
फाल्गुनी
तुम, एक हवा जो चंपा से बहकर आई तुम, एक धूप जो गुलमोहर से छनकर आई तुम, एक नदी जो मेरी आँखों से छलछल आई तुम, एक दुआ जो मेरी मुट्ठी में बँधकर आई तुम, एक साँझ जो मन की तपन में ठंडक लाई तुम, एक आवाज जो मेरे दिल में उतर आई तुम, तरंगित साज जिसे अब तक भूला नहीं पाई तुम, तन्हाई में खुली आँखें जिन्हें अब तक सुला नहीं पाई।