शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By स्मृति आदित्य

तुम, एक कच्ची रेशम डोर

फाल्गुनी

Love poem | तुम, एक कच्ची रेशम डोर
ND
तुम, एक कच्ची रेशम डोर
तुम, एक झूमता सावन मोर

तुम, एक घटा ज्यों गर्मी में गदराई,
तुम, चाँदनी रात, मेरे आँगन उतर आई

तुम, आकाश का गोरा-गोरा चाँद
तुम, नदी का ठंडा-ठंडा बाँध

तुम, धरा की गहरी-गहरी बाँहें
तुम, आम की मँजरी बिखरी राहें

तुम, पहाड़ से उतरा नीला-सफेद झरना
तुम, चाँद-डोरी से बँधा मेरे सपनों का पलना

ND
तुम, जैसे नौतपा पर बरसी नादान बदली
तुम, जैसे सोलह साल की प्रीत हो पहली-पहली

तुम, तपते-तपते खेत में झरती-झरती बूँदें,
तुम, लंबी-लंबी जुल्फों में रंगीन-रंगीन फुंदे,

तुम, सौंधी-सौंधी-सी मिट्टी में शीतल जल की धारा
तुम, बुझे-बुझे-से द्वार पर खिल उठता उजियारा।