गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By स्मृति आदित्य

रिमझिम फुहारों की कसम

फाल्गुनी

Poem | रिमझिम फुहारों की कसम
ND
रिमझिम महकती फुहारों की कसम
बरखा के दमकते मोती
कोंपलों के मुहाने पर
जब भी चम-चम चमके हैं
मेरे मन के कोरे आँगन में
तुम्हारी यादों के बादल
झर-झर कर बरसे हैं।

रुनझुन नशीली बूँदों की कसम
धरती पर आकर जब भी
जल के दीपक थिरके हैं
मेरी आँखों की मुँडेर पर
तुम्हारी प्रतीक्षा के अनार
टूट-टूट कर बिखरे हैं।

झमाझम लहराते सावन की कसम
मौसम ने जब भी मुस्कुराकर
हरा रंग पहना है
मेरे मन के धुसर होते रंगों ने
इन्द्रधनुषी ुलिका को चुना है।

गड़-गड़ गरजते बादलों की कसम
मचलती बिजली ने जब भी
पूरी कायनात को हिलाया है
मेरे अन्तर्मन को
तुम्हारी दूरियों के झोंकों ने
जार-जार ुलाया है।

सौंधी-सौंधी मिट्टी की कसम
नन्ही कलियों ने उसमें लिपट
जब भी खिलते हुए मुझे दुलराया है
मेरे हाथों को, तुम्हारे हाथों ने
ख्वाबों में देर तक सहलाया है।