फाल्गुनी की तीन कविताएँ
काव्य-संसार
1
खिले थे गुलाबी, नीले, हरे और जामुनी फूल हर उस जगह जहाँ छुआ था तुमने मुझे, महक उठी थी केसर जहाँ चूमा था तुमने मुझे, बही थी मेरे भीतर नशीली बयार जब मुस्कुराए थे तुम, और भीगी थी मेरे मन की तमन्ना जब उठकर चल दिए थे तुम, मैं यादों के भँवर में उड़ रही हूँ अकेली, किसी पीपल पत्ते की तरह, तुम आ रहे हो ना थामने आज ख्वाबों में, मेरे दिल का उदास कोना सोना चाहता है, और मन कहीं खोना चाहता है तुम्हारे लिए, तुम्हारे बिना। 2
जब सोचा था तुमने दूर कहीं मेरे बारे में यहाँ मेरे हाथों की चुड़ियाँ छनछनाई थी। जब तोड़ा था मेरे लिए तुमने अपनी क्यारी से पीला फूल यहाँ मेरी जुल्फें लहराई थी। जब महकी थी कोई कच्ची शाख तुमसे लिपट कर यहाँ मेरी चुनरी मुस्कुराई थी। जब निहारा था तुमने उजला गोरा चाँद यहाँ मेरे माथे की नाजुक बिंदिया शर्माई थी। जब उछाला था तुमने हवा में अपना नशीला प्यार यहाँ मेरे बदन में बिजली सरसराई थी। तुम कहीं भी रहो और कुछ भी करों मेरे लिए, मेरी आत्मा ले आती है तुम्हारा भीना संदेश मेरे जीवन का बस यही है शेष। 3
जब देखता हूँ मैं तुम्हारे माथे पर चमकती पसीने की बूँदें, ओस झरती हैंमेरे दिल की महकती क्यारी में, जब देखता हूँ मैं तुम्हें गोबर और पीली मिट्टी से घर का आँगन लीपते हुए मेरे मन के आँगन से सौंधी खुशबू उड़ती है, जब बुनती हो तुम ठिठुरती सर्दियों में कोई मफलर मेरे लिए मेरे अंदर का मुस्कुराता प्यार ख्वाब बुनता है तुम्हारे लिए। कभी-कभी सोचता हूँ कि काश, तुम मेरे इन देखे-अनदेखे सपनों की एक झलक भी देख पाती तो शायद यूँ कुँवारा छोड़ मुझेखुद कुँवारी ना रह जाती। आज जब गर्मियों मेंतुम्हारी यादों की कोयल का कंठ बैठे जा रहा है तुम्हारा हाथ अमराई के तले मेरे कान उमेठे जा रहा है। फाल्गुनी, तुम नहीं लौटोगी ये मुझे पता है, पता नहीं क्यों आज खुद को विश्वास दिला रहा हूँ। यह अनकही कविता तुमसे ही लिखवा रहा हूँ।