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Written By WD

गुलामी के मस्तक पर स्वराज्य का तिलक

गुलामी के मस्तक पर स्वराज्य का तिलक -
- संदीप पांडे

जन्मदिवस पर विशे
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क्रूर अँग्रेजी दासता से ग्रस्त देश ने जिस समय पहली बार स्वतंत्रता का स्वप्न देखना शुरू किया था, लगभग उसी समय 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी इलाके में एक महान राष्ट्रवादी का जन्म हुआ। नाम था - बाल गंगाधर तिलक। यूँ तो तिलक के व्यक्तित्व के अनेक आयाम हैं - जैसे एक महान लेखक एवं पत्रकार, समाज-सुधारक, प्रभावशाली वक्ता और उच्च कोटि का समन्वयक, लेकिन एक आम भारतीय के मन में तिलक की छवि ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की है, जिसने जीवन-पर्यन्त देश की स्वतंत्रता के लिए अनथक संघर्ष किया।

चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे और शिक्षक पिता की संतान तिलक को जीवन के सबसे जरूरी समय में माता-पिता का सानिध्य नहीं मिल पाया था। केवल दस वर्ष की अवस्था में ही तिलक की माँ उन्हें छोड़कर चल बसीं और कुछ ही वर्षों के बाद पिता का भी देहांत हो गया। बचपन से ही स्वतंत्रता के पक्षधर रहे तिलक भारत में स्वराज शब्द का उद्घोष करने वाले कुछ चुनिंदा लोगों में शामिल थ

‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा’ आज भी सारे देश में तिलक का वह कथन ख्यात है। सच्चे जननायक तिलक को लोगों ने आदर से लोकमान्य की पदवी दी थी।

आधुनिक ढंग से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने वाले तिलक ने स्नातक के बाद वकालत की पढ़ाई पूरी की। पश्चिमी शिक्षा पद्धति से असहमत तिलक ने युवाओं को राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के लिए अपने साथियों विष्णु शास्त्री चिपलनकर और आगरकर के साथ मिलकर ‘न्यू इंग्लिश स्कू’ की स्थापना की, जो आज ‘दक्कन एजुकेशन सोसायट’ में तब्दील हो चुका है। इन सब कामों के बीच तिलक लगातार इस प्रयास में रहते कि कैसे देश के लोगों को आभास कराया जाए। जो लोग अँग्रेजी शासन को दैवीय वरदान मानते हैं, कैसे उन्हें अपने भाई-बंधुओं के दु:ख, उनकी तकलीफों से अवगत कराया जाए। तिलक ने इसका हल पत्रकारिता में निकाला और दो साप्ताहिक पत्रों की शुरुआत की।

इनमें से एक ‘केसर’ मराठी में, जबकि ‘मराठ’ अँग्रेजी में प्रकाशित होता था। इन दोनों पत्रों के संपादकीय पूरी तरह से तिलक के विचारों पर आधारित रहते। अपने लेखों में तिलक ने तत्कालीन भारत की सच्ची तस्वीर पेश करते हुए ब्रिटिश शासन की घोर निंदा की। जब लोगों को वास्तविकता का पता चला तो समूचे महाराष्ट्र में अँग्रेजों के विरुद्ध असंतोष फैल गया। ‘क्या ये सरकार पागल हो गई है?’ और 'बेशर्म सरकार' जैसे उनके लेखों ने आम भारतीयों के मन में रोष की लहर दौड़ा दी। आश्चर्य नहीं कि दो वर्षों में ही ‘केसर’ देश का सबसे ज्यादा बिकने वाला भाषाई समाचार-पत्र बन गया था।

सन 1897 में मुंबई से पूना तक प्लेग का भयंकर आक्रमण हुआ। बीमारी से निपटने के लिए नियुक्त किए गए प्लेग कमिश्नर रैंड ने बेहद अमानवीय तरीके से काम करना शुरू किया। वह लोगों को उनके घरों से पकड़कर कैम्प में रख देता था, चाहे वो संक्रमित हो या नहीं। उनके घरों में लूटपाट करके आग लगा दी जाती। दु:खी और नाराज तिलक ने अपने स्तर पर पीडि़तों की चिकित्सा की व्यवस्था की। उन्होंने केसरी के अपने संपादकीय में गीता का उद्धरण देते हुए लिखा है कि ‘यदि कोई व्यक्ति बिना किसी फल की इच्छा के आततायी का वध करता है तो यह अपराध नहीं है’ परिणामस्वरूप प्लेग कमिश्नर रैंड और उसके एक सहयोगी की हत्या कर दी गई

लंदन के ‘ग्लो’ और ‘टाइम्स ऑफ इंडिय’ समाचार पत्रों ने तिलक पर लोगों को हत्या के लिए भड़काने का आरोप लगाया। इस आरोप में तिलक को 18 महीने की कैद हो गई। नाराज अँग्रेजों ने तिलक को भारतीय अशांति का दूत घोषित कर दिया। इस बीच तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की सदस्यता ले ली थी, लेकिन स्वराज्य की माँग को लेकर काँग्रेस के उदारवादियों का रुख उन्हें पसंद नहीं आया और सन 1907 के काँग्रेस के सूरत अधिवेशन के दौरान काँग्रेस गरम दल और नरम दल में बँट गई। गरम दल का नेतृत्व लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल कर रहे थे

सन 1908 में सरकार ने उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया। तिलक का मुकदमा मुहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा। परंतु तिलक को 6 वर्ष कैद की सजा सुना दी गई। तिलक को सजा काटने के लिए माँडले, बर्मा भेज दिया गया। सन 1916 में रिहाई के बाद तिलक ने पुन: भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में प्रवेश किया। सन 1916 से 1918 के दौरान उन्होंने एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर ‘अखिल भारतीय होम रूल ली’ की स्थापना भी की

तिलक ने बहुत पहले ही राष्ट्रीय एकता के महत्व को समझ लिया था। उन्होंने गणेश उत्सव, शिवाजी उत्सव आदि को व्यापक रूप से मनाना प्रारंभ किया। उनका मानना था कि इस तरह के सार्वजनिक मेल-मिलाप के कार्यक्रम लोगों में सामूहिकता की भावना का विकास करते हैं। वह अपने इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी हुए। तिलक ने शराबबंदी के विचार का पुरजोर समर्थन किया। वो पहले काँग्रेसी नेता थे, जिन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा स्वीकार करने की माँग की थी।

तिलक ने भारतीय दर्शन और संस्कृति पर अनेक रचनाएँ की। मांडले जेल में रचित अपनी पुस्तक ‘गीता रहस्’ में उन्होंने श्रीमदभगवद्गीता के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘आर्कटिक होम इन द वेदा’, ‘द हिंदू फिलॉसफी ऑफ लाइफ, ‘इथिक्स एंड रिलिज’, ‘वैदिक क्रोनोलॉजी एंड वेदांग ज्योति’ आदि पुस्तकों की रचना की

अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उग्र विचारधारा के साथ करने वाले बाल गंगाधर तिलक अपने अंतिम समय में बातचीत के पक्षधर हो गए थे।1 अगस्त, 1920 को इस जननायक ने मुंबई में अपनी अंतिम साँस ली।तिलक की मृत्यु पर महात्मा गाँधी ने कहा - ‘हमने आधुनिक भारत का निर्माता खो दिया है